Published On : Fri, Sep 2nd, 2016

एनसीपी असमंजस में, संगठन मजबूत करे कि चुनावी तैयारी

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नागपुर: कांग्रेसी विचारधारा से ताल्लुक रखने वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी विदर्भ में संगठन को मजबूत करने में असफल रही, या यूँ कहिये कि कभी इस ओर ध्यान ही नहीं दिया। नतीजा जब सत्ता से दूर हो गए तो चुनावी दंगल में कूदने के लिए कार्यकर्ताओं का अकाल का सामना करना पड़ रहा है। ऐसी सूरत में नागपुर जिले का हाल तो काफी बुरा है। आगामी स्थानीय स्वराज संस्था के चुनाव में पार्टी का खाता दो अंकों का खुलेगा, इस संबंध में शंका-कुशंका पर नित दिन चर्चा का दौर जारी है।

अगले वर्ष नागपुर जिले में पहले मनपा फिर जिला परिषद् का चुनाव होने वाला है। अब तक जिले में दो ही एनसीपी नेता बने, जिन्होंने कभी तीसरे को आगे नहीं किया और न ही आगे बढ़ कर शहर व जिले में एनसीपी को बढ़ाई।इसलिए जिले में कभी एनसीपी अपने बल पर कोई उल्लेखनीय कार्य नहीं कर पाई। दोनों ही नेता नागपुर ग्रामीण में अपने-अपने विधानसभा क्षेत्र तक सिमित रहे और क्षेत्र सह क्षेत्र के नागरिक व मुद्दों को तहरीज देते रहे। नतीजा यह हुआ कि जब दोनों ही नेता पिछ्ला विधानसभा चुनाव हार गए तो एनसीपी शीर्षस्थ नेताओं ने दोनों को शहर व जिला अध्यक्ष बनाकर पार्टी का संगठन मजबूत करने की जिम्मेदारी सौंप दी। अब नया गुल दोनों नेता खिलाना शुरू कर दिए, दोनों के मध्य कभी बनी नहीं, इसलिए दोनों के समर्थक अपने-अपने नेताओं के आदेशों का पालन कर संगठन की मजबूती की राह में रोड़ा बने हुए है।

नागपुर शहर में एनसीपी दो राह पर खड़ी
शहर का एक गट आगामी मनपा चुनाव में अपने पक्ष की सूरत-ए-हाल के मद्देनज़र कांग्रेस के साथ दो-ढाई दर्जन सीट की समझौता कर चुनाव में कूदना चाह रहा। वही शहर एनसीपी का कार्याध्यक्ष पहले संगठन मजूबत करने को प्राथमिकता दे रहा, फिर पक्ष व अन्य पक्ष के बागी उम्मीदवारों को पक्ष की टिकट पर चुनाव लड़वाकर पक्ष का जनाधार मजबूत करने की योजना पर भिड़ा हुआ है। वही शहर अध्यक्ष की सक्रियता संगठन के प्रति शून्य कही जा रही है। शहर कार्याध्यक्ष को खुली छूट के कारण वह किसी कार्यकर्ता या उसके मुद्दों को तहरीज नहीं देता, सिर्फ और सिर्फ अपने करीबियों से खुद को सुरक्षित रखता है। अब देखना यह है कि एनसीपी नेता मनपा चुनाव को लेकर शहर में बन रही दो फॉर्मूले में से किसको महत्व देती है।

ग्रामीण में बदहाल है एनसीपी
ग्रामीण अध्यक्ष कभी अपने विधानसभा क्षेत्र से बाहर नहीं निकले, आज जिला संगठन को मजबूती का जिम्मा मिलने पर जब पहल करना शुरू किये तो पक्ष अन्तर्गत उनके विरोधी का खेमा निष्क्रिय हो गया है। इससे यह साफ़ है कि आगामी चुनावों में संगठन कोई उल्लेखनीय उपलब्धि हासिल नहीं कर पायेगी। यह भी सत्य है कि एनसीपी के स्थानीय कार्यकर्ता-नेता अपने बल पर चुनावी जंग में सफलता पा कर पक्ष को मजबूती देते रहे है और रहेंगे।

एनसीपी नेता है पालकमंत्री के जनसंपर्क अधिकारी
विगत सप्ताह एनसीपी के पूर्व मंत्री का नगरागमन हुआ, उन्होंने सहज जिले के पालकमंत्री के सन्दर्भ में हालचाल पूछा कि तपाक से जिले के तथाकथित एनसीपी नेता ने जिले के पालकमंत्री की संघर्षमय जीवनी सह आर्थिक मामलों में कैसे रंक से राजा बना की कहानी सुनाई। अपने नेता के पालकमंत्री के रुख को देख स्थानीय कार्यकर्ता तब चुप रहे फिर जैसे ही स्थानीय नेता हटे कि पालकमंत्री के सताए एनसीपी कार्यकर्ता पूर्व मंत्री के समक्ष अपना दुखड़ा सुनाने में जरा भी देरी नहीं कि तब उक्त मंत्री ने पालकमंत्री के खिलाफ पक्का कागजी सबूत की मांग की। उक्त कार्यकर्ता ने उनके मुंबई जाने के पूर्व ३०० से अधिक पन्ने का कागजी सबूत उक्त मंत्री को थमाया। पूर्व मंत्री ने तब कह गए थे कि चिंता न करे। अब देखना यह है कि उक्त मंत्री दिए गए सबूत का अध्ययन कर पालकमंत्री के खिलाफ क्या योजना बनाकर नागपुर जिले में पालकमंत्री का अन्याय झेल रहे कार्यकर्ताओं को न्याय दिलवाते है।

नशा टुटा कट्टर कार्यकर्ता का
शहर अध्यक्ष को अभिभावक व खुद का समर्थक नेता मानने वाले एक कट्टर कार्यकर्ता को जब पता चला कि उनके नेता व उनके परिजन जिले के पालकमंत्री के प्रति सकारात्मक रुख रखते है। पालकमंत्री द्वारा किये जा रहे गैरकानूनी कृत को नज़रअंदाज कर सफल पालकमंत्री का सेहरा पहना रहे है, तो उसका रहा-सहा गुरुर भी टूट गया। यह पालकमंत्री के खिलाफ बड़ी लड़ाई लड़ रहा है, और पालकमंत्री भी सत्ता की आड़ में उक्त एनसीपी कार्यकर्ता को फ़साने में जरा भी हिचकिचा नहीं रहा है। एनसीपी कार्यकर्ता पर नौबत तो ऐसी ला खड़ी कर दी है। पालकमंत्री ने कि कब कौन सी आफत आ जाये समझ ने नहीं आ रहा।

मराठा व कुनबी तक सिमित रहा एनसीपी
स्थानीय तथाकथित नेता ने मुंबई से आये अपने नेता से साफ़-साफ़ शब्दों में कहा कि एनसीपी आज तक राज्य में मराठा व कुनबी समाज तक सिमित रही, तेली समाज को तहरीज नहीं दी। आज तेली समाज के भाजपा ने तहरीज देते हुए बावनकुले व खोपड़े जैसे नेता पैदा किये। इसलिए जिले में तेली समाज का एकताफ मत चुनावों में भाजपा के हिस्से में जाता है। हमें भी इस संबंध में कुछ करना चाहिए।

मुकेश कर्मठ तो अनिल फेंकू
मिहान में रिलाइंस उद्धोग के मुद्दे पर चर्चा चल रही थी, कि अपने मंत्री काल का अनुभव की चर्चा करते हुए एक पूर्व मंत्री ने कहा कि मुकेश जिस भी प्रोजेक्ट में हाथ डालता है उसके प्रस्ताव भी सोचने लायक व उसे लिया तो पूरा करता है। वही अनिल प्रोजेक्ट-दर-प्रोजेक्ट लेकर अधूरा छोड़ देता है। फिर चाहे केंद्र स्तर का हो या फिर महाराष्ट्र या मध्यप्रदेश से जुड़ा हो। ऐसा ही कुछ हाल मिहान का भी है।

– राजीव रंजन कुशवाहा