Published On : Tue, Dec 9th, 2025
By Nagpur Today Nagpur News

चार संपादकों के चार फोन… नागपुर में महिला डॉक्टर की लड़ाई और पत्रकारिता का काला सच फिर बेनकाब!

Advertisement

नागपुर – हिवाळी सत्र की धामधूम के बीच एक पुराना, पर आज भी चुभणारा प्रसंग फिर से सुर्ख‍ियों में है। मेयो अस्पताल के न्यायवैद्यकीय विभाग प्रमुख डॉ. मकरंद व्यवहारे के खिलाफ महिला डॉक्टर के साथ अनुचित व्यवहार का आरोप लगते ही लगभग दस साल पुराने ‘चार संपादकों के फोन’ वाला किस्सा फिर जीवंत हो उठा है। समय बदल गया, चेहरे बदल गए—लेकिन जख्म आज भी ताज़ा है।

मेयो की एक महिला डॉक्टर ने साहस जुटाकर गंभीर शिकायत दर्ज कराई थी। आरोपी सिर्फ डॉक्टर नहीं, विदर्भ के एक प्रभावशाली नेता के रिश्तेदार भी थे। ऐसे समय जब मीडिया को सच के साथ खड़ा होना चाहिए था, उसी समय हुआ कुछ उलटा।

Gold Rate
09 dec 2025
Gold 24 KT ₹ 1,28,000 /-
Gold 22 KT ₹ 1,19,000 /-
Silver/Kg ₹ 1,79,000/-
Platinum ₹ 60,000/-
Recommended rate for Nagpur sarafa Making charges minimum 13% and above

एक ही दिन चार अलग-अलग संपादकों ने अपने-अपने रिपोर्टरों को फोन किया। और उन चारों फोन में सिर्फ एक ही संदेश था—
“यह खबर मत चलाना।”

जिस पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है, उसी के कंधों पर बैठे कुछ लोग सत्ता, रिश्तों और विज्ञापन के दबाव में सच्चाई को दफनाने में जुटे थे। यह पत्रकारिता पर किया गया ऐसा वार था, जिसकी गूंज आज भी सुनाई देती है।

तत्कालीन दबावों के बावजूद आरोपी डॉक्टर का तबादला हुआ जरूर, लेकिन कुछ ही महीनों में राजनीतिक पहुंच के सहारे वे फिर उसी अस्पताल में लौट आए। वर्ष बदलते गए, सरकारें बदलीं, मंत्री-विभाग बदले पर नहीं बदला तो एक कड़वा सत्य—
सत्ता के सामने ईमानदारी की कीमत कितनी कम है।

विडंबना यह है कि वही संपादक जो कभी किसी महिला डॉक्टर की पुकार को दबाने में लगे थे, आज बड़े मंचों पर खड़े होकर नैतिकता, लोकतंत्र और पत्रकारिता की मर्यादा पर भाषण देते दिखाई देते हैं। और दूसरी ओर डिजिटल मीडिया के उभार से अखबारों के कमजोर होने पर चिंता जताते हैं।
पर असली सवाल यह है—
क्या अख़बारों को गिराने वाला पाठक था, या वे संपादक जिन्होंने खुद ही पत्रकारिता की जड़ें काट दीं?

आज फिर वही डॉक्टर सामने आकर न्याय मांग रही हैं। विशाखा समिति की रिपोर्ट साफ इशारा करती है कि शिकायत मामूली नहीं। लेकिन इस पूरे प्रकरण ने एक बड़े प्रश्न को फिर उजागर कर दिया है—
जब सच दबा दिया जाता है, जब सत्ता ख़बरों पर सेंसर लगाती है, और जब संपादक अपने ही रिपोर्टर को रोकता है… तब लोकतंत्र बचता कहां है?

पत्रकारिता की नींव पाठकों के विश्वास पर टिकती है। यह विश्वास एक बार टूट जाए तो फिर दोबारा खड़ा करना लगभग असंभव है। उस समय आए चार फोन ने न सिर्फ एक महिला डॉक्टर का साहस कुचला था, बल्कि पत्रकारिता की आत्मा को भी चोट पहुंचाई थी।

आज यह घटना फिर याद दिलाती है
सच्चाई को चाहे जितना दबाया जाए, इतिहास अंत में अपना फैसला सुना ही देता है।

Advertisement
Advertisement