नई दिल्ली: लोकसभा ने आज एक अहम क़दम उठाते हुए ऑनलाइन गेमिंग (वास्तविक पैसों से खेले जाने वाले खेलों) पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने वाला ‘प्रमोशन एंड रेगुलेशन ऑफ़ ऑनलाइन गेमिंग बिल, 2025’ पारित कर दिया।
सरकार का कहना है कि पैसों से जुड़े ऑनलाइन गेम युवाओं में तेज़ी से लत बनते जा रहे हैं और कई बार इनसे आर्थिक तबाही और आत्महत्या जैसे मामले भी सामने आए हैं। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने तो यहां तक कहा कि “ऑनलाइन मनी गेमिंग नशे से भी बड़ा सामाजिक संकट बन चुका है।”
ट्रेडिंग और गेमिंग: क्या दोनों में फर्क?
सरकार के इस फैसले के बाद यह सवाल फिर से उठने लगा है कि जब रोज़ाना लाखों लोग इंट्राडे (डे ट्रेडिंग) में पैसे गंवाते हैं, तो उसे निवेश का वैध माध्यम क्यों माना जाता है, और ऑनलाइन गेमिंग को सीधा जुआ कहकर बैन क्यों किया जा रहा है?
इंट्राडे ट्रेडिंग में निवेशक एक ही दिन में शेयर खरीदते और बेचते हैं। भले ही यह सेबी (SEBI) द्वारा रेगुलेटेड है, लेकिन नए निवेशकों में नुकसान की संभावना सबसे अधिक रहती है। आलोचकों का कहना है – “जब ट्रेडिंग भी किसी हद तक सट्टा ही है, तो फिर एक पर टैक्स और नियम, दूसरे पर बैन क्यों?”
ऑनलाइन गेमिंग बिल 2025 की मुख्य बातें
- रियल-मनी गेम्स पर पूरी तरह बैन
- केंद्रीय रेगुलेटरी अथॉरिटी का गठन
- उपभोक्ता सुरक्षा उपाय: उम्र व पहचान की जांच, जिम्मेदार गेमिंग टूल्स, शिकायत निवारण तंत्र
- ई-स्पोर्ट्स और शैक्षणिक गेम्स को बढ़ावा
उद्योग पर असर
इस क़ानून के असर से ऑनलाइन गेमिंग कंपनियों के शेयर बुरी तरह गिर गए हैं। नज़ारा टेक का स्टॉक दो दिन में ही करीब 23% तक लुढ़क गया। इंडस्ट्री एक्सपर्ट्स का मानना है कि यह बैन काले बाज़ार ऐप्स को बढ़ावा दे सकता है। वहीं, ई-स्पोर्ट्स कंपनियाँ इसे एक अवसर के रूप में देख रही हैं।
लोकसभा का यह कदम भारत में डिजिटल पॉलिसी के नए दौर की शुरुआत है। मगर सवाल अभी भी बाकी है—
“अगर ट्रेडिंग और गेमिंग दोनों में जोखिम है, तो एक को वैध निवेश और दूसरे को अवैध जुआ क्यों माना जा रहा है?”
आने वाले महीनों में यह साफ़ होगा कि यह प्रतिबंध वास्तव में समाज को सुरक्षित करेगा या फिर केवल एक नई बहस को जन्म देगा।