नागपुर: नागपुर बेंच, बॉम्बे हाईकोर्ट से प्लास्टर ऑफ पेरिस (PoP) की प्रतिमाओं के निर्माण और बिक्री को हरी झंडी मिलने के बाद इस वर्ष शहर के बाजारों में PoP गणेश प्रतिमाओं की बाढ़ आ गई है। मगर इनकी निगरानी और जिम्मेदारी को लेकर नगर निगम (NMC) और महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (MPCB) दोनों ही हाथ खड़े कर रहे हैं।
नवीन नियमों के अनुसार, हर PoP प्रतिमा पर अब लाल तेल रंग से बिंदी बनाना अनिवार्य है, ताकि नागरिक और अधिकारी आसानी से पहचान सकें और विसर्जन नियमों का पालन सुनिश्चित हो सके। लेकिन शहर में उपलब्ध PoP प्रतिमाओं की संख्या और इनके स्रोत को लेकर न तो NMC और न ही MPCB के पास कोई जानकारी है।
NMC के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया— “निर्माण इकाइयों और प्रतिमाओं की कुल संख्या का रिकॉर्ड रखना MPCB की जिम्मेदारी है। NMC केवल यह जांचता है कि विक्रेता नियमों का पालन कर रहे हैं या नहीं।”
अदालत ने पानी में PoP प्रतिमाओं के विसर्जन पर रोक लगाई है, लेकिन उनके निर्माण और बिक्री की अनुमति दी है। इसका उद्देश्य जल प्रदूषण को रोकना और पर्यावरण-अनुकूल गणेशोत्सव को बढ़ावा देना है।
कुम्हार और शिल्पकारों को हो रहा नुकसान
चिटारोली के प्रतिमा निर्माता ने बताया— “इस साल हमें भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है। पहले से बुक की गई कई मिट्टी की प्रतिमाओं के ऑर्डर रद्द हो गए क्योंकि PoP प्रतिमाएं बहुत सस्ती हैं। जहां एक मिट्टी की प्रतिमा की कीमत लगभग ₹100 होती है, वहीं PoP प्रतिमा मात्र ₹25 में मिल रही है।”
उन्होंने यह भी कहा कि कई विक्रेता नियमों का उल्लंघन करते हुए PoP प्रतिमाओं को बिना लाल निशान के मिट्टी की प्रतिमा बताकर बेच रहे हैं।
एक अन्य शिल्पकार के अनुसार— “ये PoP प्रतिमाएं अमरावती और नागपुर जिले के बाहरी इलाकों से आ रही हैं। विक्रेताओं ने इन्हें 2-3 महीने पहले स्टॉक कर लिया था और अब त्योहार से 15 दिन पहले बेचने शुरू किए हैं।”
चंद्रपुर मॉडल से सीखने की जरूरत
विशेषज्ञों का मानना है कि NMC को चंद्रपुर नगर निगम से सीख लेनी चाहिए। वहां शिल्पकारों और विक्रेताओं को मिट्टी की प्रतिमाएं बेचने के लिए विशेष स्थान दिया गया है, जिससे निगरानी आसान हो जाती है। इतना ही नहीं, वहां खरीदारों के लिए लकी ड्रा योजना भी चलाई जा रही है जिसमें अधिकृत स्थान से प्रतिमा खरीदने वालों को प्रशासन की ओर से पुरस्कार मिलते हैं।
नागरिकों का कहना है कि यदि नागपुर में भी ऐसी योजनाएं लागू की जाएं तो मिट्टी की प्रतिमाओं की मांग बढ़ेगी और पर्यावरण-अनुकूल गणेशोत्सव का सपना साकार होगा।