जब मैंने नागपुर शहर के पुलिस आयुक्त के रूप में कार्यभार संभाला, तब मेरी अपेक्षा थी कि मुझे कानून-व्यवस्था बनाए रखना, अपराध नियंत्रण और जन सुरक्षा जैसे पारंपरिक दायित्व निभाने होंगे।
लेकिन एक दोपहर मेरे कार्यालय में जो घटित हुआ, उसके लिए मैं मानसिक रूप से तैयार नहीं था।
एक माँ मेरे सामने आई — काँपती हुई, मौन, और पूरी तरह से टूट चुकी। उसकी आँखों में आँसू थे — बिना कुछ कहे ही सबकुछ कहने वाले।
मेरे स्टाफ के सहारे उसने धीरे-धीरे बोलना शुरू किया। उसकी बातें आज भी मेरे दिल में गूंजती हैं —
“सर, आप ही मेरी आखिरी उम्मीद हैं।
मेरा बेटा सिर्फ सोलह साल का है।
वह नशे की लत में पड़ गया है।
वह हिंसक हो गया है।
उसने मुझ पर हाथ उठाया है।
वह घर से चोरी करता है।
न ठीक से खाता है, न सोता है…
हम समझ नहीं पा रहे कि उसे कैसे बचाएं।”
यह केवल उसकी कहानी नहीं थी।
यह उन कई परिवारों की कहानी थी, जो चुपचाप इस त्रासदी से गुजर रहे हैं।
यह समाज में फैल रही एक खामोश महामारी का आईना थी —
जो नज़र नहीं आती, लेकिन घर तोड़ रही है, बच्चों को निगल रही है, और हमारे भविष्य को अंधकार में धकेल रही है।
उसी क्षण “ऑपरेशन थंडर” की शुरुआत हुई —
यह केवल एक औपचारिक कार्रवाई नहीं थी, बल्कि एक संकल्प था।
यह सिर्फ छापेमारी नहीं थी, यह एक मिशन था —
एक जागृति, एक सुरक्षा कवच, और एक रोकथाम की मुहिम।
मैंने तुरंत सभी पुलिस अधिकारियों की बैठक बुलाई।
स्पष्ट निर्देश दिए —
हमें केवल छोटे-मोटे ड्रग्स विक्रेताओं को नहीं,
बल्कि पूरी सप्लाई चेन को खत्म करना है।
इसमें निर्माता, वाहक, आपूर्तिकर्ता, तस्कर और यहाँ तक कि उपभोक्ता भी शामिल हैं।
इस श्रृंखला को तोड़ना ज़रूरी था।
पुराने केस दोबारा खोले गए।
खुफिया नेटवर्क को सक्रिय किया गया।
और फिर एक रात, पूरे नागपुर में एक विशाल समन्वित अभियान चलाया गया।
इस एक ही ऑपरेशन में 800 से अधिक आदतन अपराधियों को गिरफ्तार किया गया।
यह सिर्फ हिम्मत का प्रदर्शन नहीं था,
यह कानून के परिपक्व और सख्त रुख का संदेश था —
अब नशे के कारोबार के लिए कोई जगह नहीं।
यह कार्रवाई केवल प्रतीकात्मक नहीं थी —
बल्कि MCOCA, PIT NDPS, और MPDA जैसे कठोर कानूनों के अंतर्गत मुकदमे दर्ज किए गए।
लेकिन ऑपरेशन थंडर केवल आँकड़ों की कहानी नहीं थी।
यह एक व्यवस्थागत परिवर्तन था।
NDPS सेल को फिर से संगठित किया गया।
समर्पित अधिकारियों को अधिक ज़िम्मेदारी और प्रशिक्षण दिया गया।
निष्क्रिय अधिकारियों को हटाया गया।
हर केस में वैज्ञानिक और विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण अपनाया गया।
हम बैकवर्ड और फॉरवर्ड लिंक को ट्रेस करने लगे —
ड्रग्स कहाँ से आ रहे थे, कौन वितरित कर रहा था, और कौन पीड़ित थे।
इस रणनीति ने हमें ठोस और मजबूत केस तैयार करने में मदद की।
PIT NDPS एक्ट के तहत शहर में पहली बार गिरफ्तारी की गई —
जो कि एक मील का पत्थर था।
हर जब्त पैकेट के पीछे, हर केस फाइल के पीछे, एक दर्दनाक कहानी थी।
हमारी जांच में एक खौफनाक सच्चाई सामने आई —
पेडलर कमजोर और मासूम लड़के-लड़कियों को निशाना बनाते हैं।
शुरुआत में उन्हें ड्रग्स मुफ्त में देते हैं,
फिर धीरे-धीरे उन्हें लत लगवा देते हैं,
और फिर शोषण शुरू होता है।
कुछ लड़कियों को वेश्यावृत्ति की ओर धकेल दिया जाता है।
कुछ इस शोषण से टूट जाती हैं और आत्महत्या कर लेती हैं।
ये केवल आंकड़े नहीं हैं — ये मौन चीखें हैं, जो बंद दरवाज़ों के पीछे दबी पड़ी हैं।
इसीलिए हमने सिर्फ कार्रवाई नहीं,
जागरूकता और सशक्तिकरण को भी अपना हथियार बनाया।
हमारे निरंतर प्रयासों से नागपुर के 87,000 से अधिक छात्रों को नशे के खतरे के प्रति जागरूक किया गया।
हमारी पुलिस टीमें स्कूलों, कॉलेजों और संवेदनशील क्षेत्रों में जाकर संवाद, कार्यशालाएँ और काउंसलिंग सत्र आयोजित करती हैं।
इसके परिणामस्वरूप 17,000 से अधिक छात्रों ने गृह मंत्रालय के पोर्टल पर “एंटी-ड्रग प्लेज” लिया है।
इसके अतिरिक्त, हमने हर स्कूल और कॉलेज में
“एंटी-ड्रग क्लब्स” की स्थापना का प्रस्ताव दिया है —
जो छात्रों के नेतृत्व में चलने वाले निगरानी और समर्थन केंद्र के रूप में कार्य करेंगे।
नागपुर में अब बदलाव की बयार चल रही है।
घरों में संवाद शुरू हो चुका है।
शिक्षक अधिक सतर्क हैं।
माता-पिता सही सवाल पूछ रहे हैं।
हमारे पुलिसकर्मी केवल कानून लागू करने वाले नहीं,
बल्कि मार्गदर्शक, काउंसलर और संरक्षक बन चुके हैं।
लेकिन हमारी लड़ाई अभी समाप्त नहीं हुई है।
मैं सभी माता-पिता से अपील करता हूँ —
अपने बच्चों के पहले दोस्त बनिए।
उनसे बात कीजिए।
उनके व्यवहार, मनोदशा और चुप्पी पर ध्यान दीजिए।
अगर वे अलग-थलग महसूस करते हैं, तो उन्हें अकेला न छोड़ें।
आपकी मौजूदगी उन्हें बचा सकती है।
शिक्षकों से मेरा अनुरोध है —
आप समाज की पहली रक्षा पंक्ति हैं।
एक सतर्क शिक्षक, एक चिंता जताने वाला शब्द, एक फोन कॉल —
किसी बच्चे का जीवन बचा सकता है।
और नागपुर के युवाओं से मेरा संदेश —
तुम कमजोर नहीं हो।
नशे को “ना” कहना तुम्हारी ताक़त है।
तुम्हें भागने की ज़रूरत नहीं —
तुम्हें अपने सपनों का पीछा करने की ज़रूरत है।
रोशनी चुनो — अंधकार नहीं।
जीवन चुनो — नशा नहीं।
26 जून को जब दुनिया “अंतरराष्ट्रीय नशा-निषेध और अवैध तस्करी विरोधी दिवस” मना रही होगी,
तब हम केवल औपचारिकताएँ न निभाएं —
बल्कि दृढ़ता से कदम उठाएं।
बोलिए।
हस्तक्षेप कीजिए।
बचाइए।
कहीं फिर कोई माँ अश्रुओं से भरी आँखों और टूटी आत्मा के साथ किसी कार्यालय के दरवाज़े पर न खड़ी हो।
आइए, हम एक ऐसा नागपुर बनाएं,
जहाँ कोई भी बच्चा नशे का शिकार न हो।
एक ऐसा समाज बनाएं,
जो साहस को प्राथमिकता दे,
संवेदना को अपनाए,
और जीवन को चुने।
अंत में, मैं यह भी साझा करना चाहता हूँ कि
1 मार्च 2024 से 17 जून 2025 के बीच हमने 540 प्रकरण दर्ज किए हैं,
और 730 आरोपियों को गिरफ़्तार किया है।
इन मामलों में सभी प्रकार के नशीले पदार्थ जब्त किए गए,
और जब्त संपत्ति का कुल मूल्य ₹8 करोड़ 65 लाख से अधिक है।
नशे को “ना” कहें।
साहस को “हाँ” कहें।
नशा-मुक्त नागपुर के लिए साथ आएं।
आइए, हम मिलकर इस खतरे के खिलाफ थंडर करें।
आइए, हम मिलकर अपने भविष्य की रक्षा करें।