नागपुर: प्रैक्टिकल परीक्षा में पास कराने के एवज में कथित रूप से रिश्वत मांगने के एक मामले में फंसे प्रोफेसर प्रशांत राम को भ्रष्टाचार प्रतिबंधक अधिनियम के तहत चल रही सुनवाई के बाद विशेष अदालत ने बरी कर दिया है। विशेष न्यायाधीश एच.सी. शेंडे की अदालत ने अभियोजन पक्ष के साक्ष्यों को असंगत और अविश्वसनीय मानते हुए प्रोफेसर को दोषमुक्त करार दिया।
मामला तब सामने आया जब एक छात्र ने प्रोफेसर द्वारा रिश्वत मांगने की शिकायत भ्रष्टाचार प्रतिबंधक विभाग (ACB) से की थी। शिकायत पर कार्रवाई करते हुए ACB ने जाल बिछाकर प्रोफेसर को रंगेहाथ पकड़ने का दावा किया और मामला दर्ज किया गया। डिजिटल वॉयस रिकॉर्डर की मदद से रिश्वत मांगने का प्रमाण भी जुटाने की बात कही गई।
गवाहों के बयान में विरोधाभास, इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य साबित करने में विफल रहा अभियोजन
प्रोफेसर प्रशांत राम की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता प्रकाश नायडू ने दलील दी कि अभियोजन पक्ष की कार्यवाही में कई खामियां थीं। उन्होंने कहा कि जिन गवाहों के बयान अदालत में प्रस्तुत किए गए, उनमें भारी विरोधाभास है। साथ ही, टेप रिकॉर्डर, वॉयस रिकॉर्डिंग, मेमोरी कार्ड आदि की प्रामाणिकता भी साबित नहीं हो पाई।
नायडू ने आपराधिक मैनुअल में वर्णित टेप रिकॉर्डिंग के नियमों का हवाला देते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष इन नियमों का पालन करने में विफल रहा। सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि इस तरह के इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य, जब तक उनकी प्रमाणिकता पूर्णतः सिद्ध न हो, सजा का आधार नहीं बन सकते।
केवल आरोप और चार्जशीट से नहीं होता दोष सिद्ध: कोर्ट
सुनवाई के दौरान अदालत ने माना कि अभियोजन पक्ष अपने आरोपों को साबित करने में असफल रहा। केवल आरोप लगाने और चार्जशीट दाखिल करने से दोष सिद्ध नहीं होता, इसके लिए ठोस साक्ष्य और प्रक्रिया की पूर्णता जरूरी होती है।
कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलों पर विचार करते हुए अंततः प्रोफेसर प्रशांत राम को सभी आरोपों से मुक्त कर दिया।