Published On : Mon, Jun 14th, 2021

एक जमीन, तीन किरदार…10 मिनट में बढ़े करोड़ों में दाम… अयोध्या जमीन विवाद

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समाजवादी पार्टी, आम आदमी पार्टी की ओर से आरोप लगाया गया है कि राम मंदिर के लिए ज़मीन खरीद के नाम पर करोड़ों रुपये को घोटाला हुआ है. रविवार को हुए इस खुलासे के बाद से ही आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है और उत्तर प्रदेश की सियासत में उबाल आ गया है.

उत्तर प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले अयोध्या में बन रहा राम मंदिर विवादों के घेरे में आ गया है. समाजवादी पार्टी, आम आदमी पार्टी की ओर से आरोप लगाया गया है कि राम मंदिर के लिए ज़मीन खरीद के नाम पर करोड़ों रुपये को घोटाला हुआ है. रविवार को हुए इस खुलासे के बाद से ही आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है और उत्तर प्रदेश की सियासत में उबाल आ गया है.

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पिछले साल अयोध्या में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भगवान राम के भव्य मंदिर के निर्माण के लिए भूमि पूजन में हिस्सा लिया. सारी तैयारियां हो गई थीं, लगातार काम भी चल रहा था और अब सिर्फ इंतजार एक भव्य राम मंदिर का था. लेकिन इस बीच जिस ट्रस्ट पर मंदिर बनाने की जिम्मेदारी है, उसी पर एक आरोप लग गया.

दस मिनट में जमीन के दाम करोड़ों में बढ़े…

ये आरोप है जमीन खरीद में भ्रष्टाचार का. आरोपों के मुताबिक, 2 करोड़ की जमीन को ट्रस्ट ने साढ़े 18 करोड़ में खरीदा है. पहले जमीन की कीमत 2 करोड़ थी लेकिन महज 10 मिनट में ही डील पक्की हुई और वो कीमत हो गई साढ़े 18 करोड़. 10 मिनट के अंतराल में जमीन की कीमत साढ़े 16 करोड़ बढ़ गई. यानी प्रति सेकेंड साढ़े पांच लाख रुपये महंगी होती गई जमीन और 10 मिनटों में कीमत में 9 गुना इजाफा हो गया.

इसी साल 18 मार्च को उस जमीन की दोनों डील हुई और दोनों डील में महज 10 मिनट का फर्क है. सबसे बड़ी बात कि दोनों डील में दोनों गवाह कॉमन हैं, उनमें एक नाम अनिल मिश्रा का है जो रामजन्मभूमि ट्रस्ट के सदस्य हैं. और दूसरा नाम है अयोध्या के मेयर ऋषिकेश उपाध्याय का, हालांकि ऋषिकेश उपाध्याय भ्रष्टाचार के किसी भी आरोप से साफ साफ इनकार कर रहे हैं.

आम आदमी पार्टी सांसद संजय सिंह तो जमीन की खरीद में भ्रष्टाचार का आरोप लगा रहे हैं और सीबीआई जांच की मांग तक कर रहे हैं. तमाम सियासी सवालों के बीच राम मंदिर ट्रस्ट ने इसे राजनीतिक आरोप बता दिया है.

जिस जमीन पर विवाद, उसके तीन किरदार…

अयोध्या में विवादों में आए जमीन को लेकर सियासत गरमाई है. लेकिन इसके केंद्र में 3 अहम किरदार हैं. जमीन का मालिकाना हक कुसुम पाठक का था, जिन्होंने 2010-11 में ही जमीन का समझौता रवि मोहन तिवारी और सुल्तान अंसारी से कर लिया. वही समझौता कागजी तौर पर करीब 10 साल बाद यानी इस साल 18 मार्च को फाइनल हुआ. कुसुम पाठक ने 2 करोड़ में रवि मोहन तिवारी और सुल्तान अंसारी को बेच दिया.

18 मार्च को ही रवि मोहन तिवारी और सुल्तान अंसारी ने 2 करोड़ वाली वो जमीन श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट को बेच दी और कीमत ली गई साढ़े 18 करोड़. अब इसी डील को लेकर विवाद का अध्याय शुरू हो गया है. जिस जमीन का विवाद है उसका एरिया है 12080 वर्ग मीटर, रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र में पड़ने वाली इस जमीन पर जन्मभूमि के कुछ मंदिर बनाए जाने की योजना है. लेकिन सियासी सवालों से उपजा विवाद फिलहाल थमता नहीं दिख रहा है.

मेयर और ट्रस्ट ने गलत करार दिए आरोप…

जमीन की डील में गवाह रहे अयोध्या के मेयर ऋषिकेश उपाध्याय कर रहे हैं कि तमाम आरोप सियासी साजिश का हिस्सा हैं. ऋषिकेश उपाध्याय ने आजतक से बात करते हुए कहा कि राम मंदिर ट्रस्ट ने बयान जारी कर साफ कर दिया है कि वो भूमि वर्षों पुराने अनुबंध पर थी, उसी के अनुसार उसे अपने नाम कराया गया है. मैं मेयर के नाते सभी विषयों में गवाह हूं.

ऋषिकेश उपाध्याय ने कहा कि जो पैसा ट्रांसफर हुआ है, वह उसके गवाह रहे हैं. दस मिनट में कीमत कैसे बढ़ी, इसपर मेयर ने सफाई दी कि वह अनुबंध वर्षों पुराना है, जिसे लोग कुछ मिनट बताया जा रहा है. जो लोग मुद्दा उठा रहे हैं, वो राजनीतिक लोग हैं. जिनको भगवान राम से दिक्कत है, वो लोग ये मुद्दा उठा रहे हैं.

मेयर के अलावा श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के चंपत राय ने भी आरोपों पर जवाब दिया और अपने पत्र में कहा कि श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ने अभी तक जितनी जमीनें खरीदी हैं, वह खुले बाजार की कीमत से बहुत कम हैं. लोग राजनीतिक विद्वेष से प्रेरित होकर भ्रम फैला रहे हैं.

आरोप और प्रत्यारोप के इस दौर में राजनीतिक घमासान जारी है. अगले साल उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव हैं, ऐसे में समाजवादी पार्टी, आम आदमी पार्टी या अन्य विपक्षी दल इस मसले को बड़ा बनाने में जुटे हुए हैं और सरकार से इसकी जांच कराए जाने की मांग है.

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