Published On : Tue, Aug 11th, 2020

मैं बच भी जाता तो एक रोज मरने वाला था – Rahat Indori

Advertisement

मैं बच भी जाता तो…

किसने दस्तक दी, दिल पे, ये कौन है
आप तो अन्दर हैं, बाहर कौन हैये हादसा तो किसी दिन गुजरने वाला था
मैं बच भी जाता तो एक रोज मरने वाला था

मेरा नसीब, मेरे हाथ कट गए वरना
मैं तेरी माँग में सिन्दूर भरने वाला था

Gold Rate
24 April 2025
Gold 24 KT 96,500 /-
Gold 22 KT 89,700 /-
Silver / Kg 98,800 /-
Platinum 44,000 /-
Recommended rate for Nagpur sarafa Making charges minimum 13% and above

अंदर का ज़हर चूम लिया

अंदर का ज़हर चूम लिया धुल के आ गए
कितने शरीफ़ लोग थे सब खुल के आ गएकॉलेज के सब बच्चे चुप हैं काग़ज़ की इक नाव लिए
चारों तरफ़ दरिया की सूरत फैली हुई बेकारी है

कहीं अकेले में मिल कर झिंझोड़ दूँगा उसे
जहाँ जहाँ से वो टूटा है जोड़ दूँगा उसे

बहुत हसीन है दुनिया

आँख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो
ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखोउस आदमी को बस इक धुन सवार रहती है
बहुत हसीन है दुनिया इसे ख़राब करूं

बहुत ग़ुरूर है दरिया को अपने होने पर
जो मेरी प्यास से उलझे तो धज्जियां उड़ जाएं

मोड़ होता है जवानी का सँभलने के लिए

रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है
चाँद पागल है अँधेरे में निकल पड़ता हैहम से पहले भी मुसाफ़िर कई गुज़रे होंगे
कम से कम राह के पत्थर तो हटाते जाते

मोड़ होता है जवानी का सँभलने के लिए
और सब लोग यहीं आ के फिसलते क्यूं हैं

एक चिंगारी नज़र आई थी

नींद से मेरा ताल्लुक़ ही नहीं बरसों से
ख़्वाब आ आ के मेरी छत पे टहलते क्यूं हैंएक चिंगारी नज़र आई थी बस्ती में उसे
वो अलग हट गया आँधी को इशारा कर के

इन रातों से अपना रिश्ता जाने कैसा रिश्ता है
नींदें कमरों में जागी हैं ख़्वाब छतों पर बिखरे हैं

बुलाती है मगर जाने का नहीं

बुलाती है मगर जाने का नहीं

ये दुनिया है इधर जाने का नहीं

मेरे बेटे किसी से इश्क़ कर

मगर हद से गुज़र जाने का नहीं

ज़मीं भी सर पे रखनी हो तो रखो

चले हो तो ठहर जाने का नहीं

सितारे नोच कर ले जाऊंगा

मैं खाली हाथ घर जाने का नहीं

वबा फैली हुई है हर तरफ

अभी माहौल मर जाने का नहीं

वो गर्दन नापता है नाप ले

मगर जालिम से डर जाने का नहीं

अगर खिलाफ हैं, होने दो, जान थोड़ी है

ये सब धुँआ है, कोई आसमान थोड़ी है

लगेगी आग तो आएंगे घर कई ज़द में

यहाँ पे सिर्फ़ हमारा मकान थोड़ी है

मैं जानता हूँ कि दुश्मन भी कम नहीं लेकिन

हमारी तरह हथेली पे जान थोड़ी है

हमारे मुंह से जो निकले वही सदाक़त है

हमारे मुंह में तुम्हारी ज़ुबान थोड़ी है

जो आज साहिब-इ-मसनद हैं कल नहीं होंगे

किराएदार हैं जाती मकान थोड़ी है

सभी का खून है शामिल यहाँ की मिट्टी में

किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़ी है

Advertisement
Advertisement