Published On : Sat, May 16th, 2015

अकोला : पीकेवी विभाजन के लिए डा. वेंकटेश्वरल्लू समिति

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विभाजन की प्रक्रिया को गति

akola
अकोला। महाराष्ट्र में संचालित होनेवाले महात्मा फुले कृषि विश्वविद्यालय राहुरी एवं डा. पंजाबराव देशमुख कृषि विश्वविद्यालय अकोला इन दो कृषि विश्वविद्यालयों का कार्यक्षेत्र काफी बडा होने के कारण इन  विश्वविद्यालयों का विभाजन को लेकर विस्तृत रिपोर्ट बनाने के लिए नाबार्ड के पूर्व अध्यक्ष डा.वाई.एस.पी. थोरात की अध्यक्षता में उच्चस्तरीय समिति गठित की गई थी. इस समिति की रिपोर्ट शासन को प्राप्त हो गई है. इसलिए समिति रिपोर्ट पर कार्यवाही करने के लिइ, उपरोक्त दोनों विश्वविद्यालयों का विभाजन करने के लिए अब परभणी स्थित वसंतराव नाई मराठवाडा कृषि विश्वविद्यालय के उपकुलपति डा. वेंकटेश्वरल्लू की अध्यक्षतावाली समिति गठित की है.

इस समिति की रिपोर्ट आने के बाद पीकेवी के विभाजन का रास्ता साफ होगा. विदर्भ के 11 जिलों के कार्यक्षेत्रवाले डा. पंजाबराव देशमुख कृषि विश्वविद्यालय का कार्यक्षेत्र अकोला से लेकर गडचिरोली एवं अकोला से लेकर लोणार तक फैला हुआ है. जिसके कारण इन जिलों में किसानों को सही समय पर मार्गदर्शन नहीं मिल पाता, जिसे देखते हुए राज्य  सरकार ने नाबार्ड के पूर्वअध्यक्ष डा. थोरात की अध्यक्षता में उच्चस्तरीय समिति गठित की थी. इस समिति की रिपोर्ट शासन को प्राप्त हो गई है, लेकिन उस रिपोर्ट पर कार्रवाई करने के लिए तथा तकनीकी, आर्थिक व प्रशासकीय जानकारी लेने के लिए अब डा. वेंकटरेश्वरल्लू समिति का गठन किया गया है. इस समिति में पीकेवी के शिक्षा अधिष्ठाता एवं महात्मा फुले विश्वविद्यालय राहुरी के अधिष्ठाता, सामाजिक वनीकरण कोकण विभाग, ठाणे के मुख्य वन संरक्षक एवं महासंचालक उदय अवसक, दोनोंं विश्वविद्यालयों केनियंत्रक सदस्य, महाराष्ट्र कृषि शिक्षा व अनुसंधान परिषद पुणेका एक-एक सदस्य, दापुली कृषि विश्वविद्यालय के कुल सचिवका समावेश है.

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यह समिति नए विश्वविद्यालय के गठन परलगनेवाली कृषि भूमि तथा आनेवाले खर्च के बारे में सिलसिलेवार रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी. समिति दोनों विश्वविद्यालयों के पास उपलब्ध संसाधनों का ब्यौरा तैयार करेगी, नया विश्वविद्यालय स्थापन होने के बाद प्रत्येक विश्वविद्यालय के हिस्से में आनेवाले संसाधन, मनुष्यबल तथा लगनेवाले अतिरिक्त साधन सामग्री संभाव्य आर्थिक एवं शैक्षिक दबाव की जानकारी शासन को देगी. समिति को निर्देश दिया गया है कि वह संभावित स्थलों पर प्रत्यक्ष जाकर जायजा ले एवं स्वयं स्पष्ट रिपोर्ट दो माह के भीतर शासन को प्रस्तुत करे.

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