Published On : Thu, Aug 14th, 2014

भंडारा : मच्छरों को निगलने वाली मछलियां हुई गायब

Advertisement


मछलियों के नाम पर अधिकारियों ने डकारे करोडो रूपए

भंडारा

मलेरिया, चिकन गुनिया, डेंग्यू जैसी बीमारियो से भंडारा जिले में जनजीवन अस्त-व्यस्त होने लगा है. घर-घर में लोग खाट पर पड़े है, सरकार के तमाम दावे खोखले साबित हो रहे है. ऐसा नहीं है की यहाँ दवाईयां नहीं आती. बड़े पैमाने पर दवाइया आती है. गप्पी मछलिया भी छोड़ी जाती है, अधिकारियों का भ्रष्टाचार सब पर हावी है. बीमारी नियंत्रण के लिए की जा रही उपाय योजनाऐं फिसड्डी साबित हो रही है. एक मामूली मच्छर से पैदा होनेवाली मलेरिया, चिकन गुनिया, डेंग्यू जैसी बीमारियो से लोग मौत के मुह में समा रहे है. पहले मच्छरों से मलेरिया की ही बीमारी होती थी, लेकिन अब इन मच्छरों के काटने से डेंग्यू चिकन गुनिया जैसी बीमारिया हो रही है. मच्छरों के उन्मूलन के लिए वैज्ञानिको ने एक नायाब नुक्सा खोज निकाला था. यह नुस्खा गप्पी नामक मछलियो के पालन-पोषण से संबंधित था.

Gold Rate
26 July 2025
Gold 24 KT 98,300 /-
Gold 22 KT 91,400 /-
Silver/Kg 1,13,700/-
Platinum 44,000/-
Recommended rate for Nagpur sarafa Making charges minimum 13% and above

इन मछलियो को सिर्फ उन स्थानो पर छोड़ा जाता था जहां मच्छरों की आबादी बढ़ने की संभावनाएं थी. मसलन खाली प्लाटों, गड्डो, पोखर, तालाब इत्यादि में मछलिया मच्छरों के अंडो को खा जाती थी. आमतौर पर मच्छर मारने के लिए दवाओं का छिड़काव किया जाता था. लेकिन दवाओ की जगह मछली का इस्तमाल अधिक कारगर साबित हुआ. लिहाजा केंद्र व राज्य सरकारों ने विशेष अभियान चलाते हुए गप्पी मछली के इस्तमाल को बढावा दिया इसके लिए राजकोष से करोडो रु. खर्च किये गए. लेकिन मच्छरों का आतंक कम नही हुआ. बताया जाता है की गप्पी मछलियो के नाम पर सरकारी अधिकारियो ने लाखो की बंदरबांट की. खर्च तो दर्शाया गया, लेकिन मछलिया नहीं छोड़ी गई.

मलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम अंतर्गत जिले के अस्पतालों और उपस्वास्थ केन्द्रो में देखरेख के अभाव में टैंक से मछलियो का नामोनिशान मिट गया है . लाखो रुपयो की लागत से बने टैंको में दरारे पड़ गई लेकिन गप्पी मछलिया खरीदने-पालने पर सरकारी फाईलो में खर्च का आंकड़ा बढ़ता रहा. इन दिनों जिले भर में डेंग्यू का प्रकोप जारी है. प्रत्येक गांव में मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है, सरकारी अस्पतालों में खून जाँच भी ढंग से नहीं हो रही है. देशभर में मलेरिया उन्मूलन भले ही एक मिशन बना हो मगर भंडारा जिले में यह मिशन एक मजाक बनकर रह गया है. शासकीय स्तर पर ठोस कदम नहीं उठाये जा रहे है. डेंग्यु, मलेरिया पर रोकथाम के उपाय खोजने की बजाय स्वास्थ विभाग माल सुतो अभियान में लगा हुआ है.

सरकारी अस्पतालों में इलाज के अभाव के चलते लोग निजी अस्पतालों की शरण में जा रहे है. सरकारी अस्पतालों में दवाइयो का अभाव है. गंभीर स्थिति के मद्देनजर मरीज को भर्ती तो करते है लेकिन दवाइया बाहर से मंगाई जाती है. खून लेकर नमुना जांच के लिए पुणे भेजा जाता है लेकिन क्या हर मरीज का खून जांच के लिये पुणे भेजा जाता है ये बड़ा सवाल है. जो इस बीमारी से ग्रस्त होकर चलने- फिरने व खाने-पिने लायक नहीं रह जाता ऐसे ही बीमार का खून निकालकर जांच के लिए पुणे भेजा जाता है और बाकि मरीजों का खून नही भेजा जाता, बावजूद इसके यह दर्शाया जाता है की खून जांच के लिए पुणे भेजा गया है.

Representational pic

Representational pic

Advertisement
Advertisement