Published On : Wed, Mar 15th, 2017

बच सकते हैं अपराधी अगर नहीं आयी फॉरेंसिक रिपोर्ट की सही जांच

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नागपुर टुडे- किसी भी आपराधिक घटना का वैज्ञानिक विधि व तकनीक द्वारा किया गया विश्लेषण विधि विज्ञान या न्यायालयिक विज्ञान के अन्तर्गत आता है। जिसे फॉरेंसिक साइंस के नाम से जाना जाता है। यह अध्ययन घटनास्थल से प्राप्त अनेक साक्ष्यों पर आधारित होता है। रक्त, बाल, कपड़े को भी साक्ष्य ही माना जाता है। वानस्पतिक साक्ष्यों में शैवाल, डायटम, कवक, स्पोर, परागकण आदि सूक्ष्म साक्ष्य तथा कांटेदार फल, बीज, लकड़ी, रूई व रेशे आदि दृष्ट साक्ष्यों की श्रेणी में आते हैं, पहले घटना स्थल पर उपस्थित इन साक्ष्यों को नजर अन्दाज कर दिया जाता था, परन्तु अनेक मामलों में न्यायालय ने इन साक्ष्यों के महत्व को स्वीकारा है, और अब यह मान्यता प्राप्त साक्ष्य हैं।

किसी भी आपराधिक घटना को सुलझाने व अपराधियों को दण्ड दिलाने में पुलिस विभाग के साथ-साथ न्यायालिक विज्ञान या विधि विज्ञान (फोरेसिंक विज्ञान) के विशेषज्ञ भी शामिल होते हैं। यह विशेषज्ञ घटना को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से जाँचकर घटनाक्रम में प्रयोग की गयी वस्तुओं व तकनीक का विश्लेषण कर अपराधियों की पहचान करते हैं। लेकिन कई बार ऐसा होता है की सबूत को फॉरेंसिक लैब में ले जाने के बाद उसकी जांच रिपोर्ट सही तरीके से नहीं आती है। जिसके कारण मामला और उलझ जाता है। ऐसे में आपराधिक मामलों में सबूतों को किस तरह से उसका सरंक्षण किया जाए। इस बाबत शासकीय न्यायसहायक विज्ञान संस्था के न्यायसहायक विज्ञान विभाग के सहायक प्राध्यापक आशीष बढ़िये ने जानकारी देते हुए बताया कि अपराध के घटने के बाद सबूतों की सावधानी पूर्वक पैकेजिंग आवश्यक है। साथ ही इसके तुरंत उस समय उस वस्तु की फोटो खीं जाए क्योंकि बाद की स्थिति में वह वैसी स्थिति में न रहे जैसे वह घटना के दौरान थी। इसलिए यह जरुरी है।

कितने प्रकार से आपराधिक घटनास्थल पर सबूतों की खोज

उन्होंने बताया कि आपराधिक घटनास्थल की जांच की कुछ विशेष पद्धतियां हैं। जिसके अन्तर्गत यह खोज की जाती है। इसमें वील, ग्रीड, स्ट्रिप, जोन और स्पाइरल प्रमुख है। वील जांच आपराधिक घटनास्थल के चारों तरफ जांच की जाती है। स्ट्रिप जांच में लाइन में जांच की जाती है। जोन में क्रमांक के अनुसार जांच की जाती है और स्पाइरल में घटनास्थल से लेकर बाहर तक जांच होती है।

बायोलॉजिकल नमूने और जले नमूनों को सावधानीपूर्वक सहेजे

आशीष बढ़िये ने जानकारी देते हुए कहा कि आपराधिक घटनाओं में बायोलॉजिकल नमूने और जलनेवाली घटनाओं में जलने के नमूने काफी संवेदनशील होते हैं। कई बार देखने में आता है कि रक्त इत्यादि के नमूनों की जांच की रिपोर्ट ठीक से नहीं आ पाती है। रक्त को गीला पैक करने से भी जांच प्रभावित हो सकती है।इसके लिए आवश्यक है कि जो भी जांच अधिकारी कर्मचारी घटनास्थल से रक्त के नमूने एकत्रित करें वे सावधानीपूर्वक करें और हो सके तो सूखे हुए रक्त के नमूने लें। साथ ही इसके अगर केरोसिन, पेट्रोल से जुड़ा कोई मामला है तो उसे एयर टाइट बोतल या कंटेनर में ही बंद करें।

कई मामलो में अपराधी करते हैं नमूनों के साथ फेरबदल

देश में ऐसे कई मामले हैं जो वर्षों से प्रलंबित हैं। अपराध के बाद में फॉरेंसिक जांच की रिपोर्ट भी ठीक से नहीं होने से मामले में देरी होती है। कई बार अपराधी अपराध करने के बाद सबूतों को मिटाने की कोशिश करता है। कई बार पुलिस कर्मियों की लापरवाही के चलते भी नमूनों की रिपोर्ट सही नहीं आ पाती है।

4 प्रकार से कर सकते हैं सबूतों का बचाव

प्राध्यापक आशीष ने बताया कि कई बार ऐसा होता है की जल्दबाजी में अधिकारी या कर्मचारी गलत तरीके से सबूतों को उठाते हैं। जिसके कारण उसको लैब में जाकर जांच कराने पर कुछ भी पता नहीं चलता। जिससे जांच प्रभावित होती है। इसके लिए जांच अधिकारियों को चाहिए की वह सबसे घटना का सबसे पहले नोट्स लिखना, फोटो लेना, स्केचिंग और जरुरत पड़े तो वीडियोग्राफी भी कर सकते हैं।

‘चैन ऑफ़ कस्टडी’ है अति महत्वपूर्ण

उन्होंने यह भी बताया कि घटनास्थल से लेकर न्यायालय में पेश किए जाने तक किसी भी समय पर एक साक्ष्य किस के पास कितने समय के लिए, कहाँ और क्यों था, यह जानकारी लगभग हर मामलो में अति महत्वपूर्ण साबित हुई है। इससे यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि सबूतों से किसी प्रकार की कोई छेड़छाड़ न की गई हो। यह ऐसी महत्वपूर्ण बाते हैं जिनको ध्यान में रखकर पुलिस, घटनास्थल अधिकारी को सही तरीके से रिजल्ट ओरिएंटेड इन्वेस्टीगेशन में मदद मिल सकती है।

फॉरेंसिक विज्ञान की जांच के पहलू

शासकीय न्यायसहायक विज्ञान संस्था के न्यायसहायक विज्ञान विभाग की सहायक प्राध्यापक नीति कपूर ने बताया कि अपराधिक घटनाओं में छोटे से छोटे नमूनों का भी काफी महत्व होता है। इन नमूनों से भी अपराधी तक पहुंचा जा सकता है। उन्होंने फॉरेंसिक जांच में जानकारी देते हुए बताया कि कई बार अपराधी हथियारों पर निशान छोड़ते हैं। जिसके लिए हथियार को किसी भी ऐसी जगह से हाथ में पकडे जहां पर निशान लगना मुमकिन ना हो। साथ ही इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि अलग-अलग जगहों से प्राप्त सबूतों को अलग-अलग ही पैक किया जाए, विभिन्न फिंगरप्रिंट्स पाउडर के लिए अलग-अलग ब्रश का प्रयोग किया जाना चाहिए। फ्यूमिंग मेथड्स और केमिकल मेथड्स का प्रयोग कर पुराने फिंगरप्रिंट्स डेवलप करने में सफलता मिल सकती है। सुसाइड नोट मिलने अथवा फर्जी दस्तावेजों से जुड़े मामलों में हैंडराइटिंग एनालिसिस का महत्वपूर्ण रोल हो सकता है। अल्ट्रावायलेट लैंप या टोर्च के प्रयोग से महीन छोटे छोटे सबूतों को ढूंढना भी संभव है।

शमानंद तायडे