Published On : Tue, May 13th, 2014

चंद्रपुर : न गेट का पता, न व्याघ्र का और न दिखते हैं वन्यप्राणी

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ताड़ोबा अंधारी व्याघ्र प्रकल्प में पसरी हैं असुविधाएं


चंद्रपुर

tadoba jangle gate
बाघों की संख्या के बढ़ने के साथ ही ताड़ोबा अंधारी व्याघ्र प्रकल्प भी दुनिया के नक्शे पर आ गया है. पर्यटकों की संख्या भी बढ़ने लगी है. लेकिन जंगल सफारी करने आने वाले पर्यटकों को पता ही नहीं चल पाता कि इसका प्रवेश द्वार कहां है और उन्हें जाना कहां से है. कई बार तो ऐसा होता है कि जानकारी के अभाव में पर्यटक प्रवेश द्वार तक आकर लौट जाते हैं. व्याघ्र दर्शन के लिए लोगों को आकर्षित करने हेतु सरकार ने ऑनलाइन सेवा शुरू तो कर दी, मगर जानकारी के अभाव में ये सेवा भी सिरदर्द साबित हो रही है. सवाल यह है कि इस असुविधा के लिए आखिर जिम्मेदार कौन है ?

8 महीने खुला रहने वाला प्रकल्प
बारिश के चार महीनों को छोड़कर ताड़ोबा व्याघ्र प्रकल्प बारहों महीने पर्यटकों के लिए खुला रहता है. इसके चलते पर्यटकों की संख्या दिन ब दिन बढ़ती जा रही है. पर्यटकों के लिए अनेक योजनाएं भी बनाई गईं है. पहले ताड़ोबा दर्शन के लिए पर्यटकों को सीधे वन विभाग के ताड़ोबा कार्यालय जाना पड़ता था. एक साल पहले बुकिंग की सारी प्रक्रिया ऑनलाइन कर दी गई. इससे न सिर्फ पर्यटकों की संख्या बढ़ी, बल्कि दुनिया भर के पर्यटक यहां हाजिरी लगाने लगे.

बाघ देखने की उम्मीद में
पूरी दुनिया में तुलनात्मक दृष्टि से ताड़ोबा में बाघों की संख्या बढ़ने के संबंध में रिपोर्ट के प्रकाशित होने के बाद पर्यटक इस उम्मीद में यहां आते हैं कि बाघ के दर्शन तो होने ही है. पिछले कुछ महीनों में पर्यटकों की संख्या काफी बढ़ी है. ताड़ोबा में एंट्री ऑनलाइन बुकिंग के माध्यम से होती है. बुकिंग के समय ही बता दिया जाता है कि किस गेट से जाना है. आज की तारीख में व्याघ्र दर्शन के लिए 6 गेट खुले हैं. इसमें खुंटवड़ा, कोलारा, मोहुर्ली, नवेगांव, पांगडी और झरी (कोलसा) शामिल हैं. पर्यटक बुकिंग के बाद सीधे चंद्रपुर पहुंचते हैं और वे वहां से सबसे करीब पडने वाले मोहुर्ली गेट जाते हैं. वहां उन्हें पता चलता है कि इस गेट से वे भीतर नहीं जा सकते. दरअसल, इसका मुख्य कारण ऑनलाइन सेवा में सारे गेटों की पूरी जानकारी न देना होता है.

6 गेट खुले
व्याघ्र दर्शन के लिए भले ही 6 गेट खुले हों, मगर मोहुर्ली से खुंटवड़ा का अंतर 15 किलोमीटर, कोलारा गेट का अंतर 65 से 70 किलोमीटर, नवेगांव का अंतर 35 से 40 किलोमीटर, चंद्रपुर से पांगडी गेट का अंतर 115 किलोमीटर और झरी (कोलसा) गेट का अंतर 70 किलोमीटर है. परन्तु यह जानकारी ऑनलाइन वेबसाइट पर उपलब्ध नहीं होने के कारण पर्यटक सीधे चंद्रपुर ही पहुंचते हैं. दरअसल जिस गेट से भीतर जाने की अनुमति दी जाती है, उस संबंध में पर्यटकों को पूरी जानकारी उपलब्ध कराई जानी चाहिए. जानकारी के अभाव में वापस जाने वाले पर्यटकों को रोका जाना चाहिए. पर्यटकों को हो रही असुविधा क़ो दूर किया जाना चाहिए. सरकार को इस तरफ गंभीरता से ध्यान देना चाहिए.
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पानी के लिए वन्य प्राणियों का भटकाव
ताड़ोबा के वन्यप्राणी जामनी, तेलिया और पांढरपवणी स्थित छोटे तालाबों में अपनी प्यास बुझाने आते हैं. लेकिन हाल के दिनों में पानी की कमी होने क़े कारण वन्यप्राणी गांव की ओर मुड़ गए, जिससे मानव-वन्यप्राणी संघर्ष बढ़ गया. इसके उपाय के रूप में वन विभाग में अनेक जलाशय बनाए. ये जलाशय जंगल सफारी के रास्ते में होने के कारण पर्यटकों को वन्य प्राणियों के दर्शन हो जाते थे. व्याघ्र दर्शन नहीं होने पर भी इससे पर्यटकों को संतोष तो मिलता ही था. लेकिन इस साल तो अभी तक इन जलाशयों में पानी भरने की प्रक्रिया ही अब तक पूर्ण नहीं हो पाई है. इससे वन्यप्राणियों का न सिर्फ जलाशयों के निकट आना बंद हो गया है, बल्कि वे तो अब पानी की तलाश में भटकने भी लगे हैं. भटकते – भटकते ये प्राणी अब गांवों तक पहुंचने लगे हैं.