चंद्रपुर जिले के गांवों में दो-दो किलोमीटर दूर से लोग लाते हैं पानी
चंद्रपुर
चंद्रपुर में धूप के चटके लगने के साथ ही पानी के स्रोत भी सूख रहे हैं. जलसंकट से निपटने के लिए जिला परिषद का जलापूर्ति विभाग गांवों में जलापूर्ति कर रहा है, लेकिन पहाड़ों पर रहने वाले आदिवासियों की पानी के लिए भाग-दौड़ थमने का नाम नहीं ले रही है. करोड़ों रुपए खर्च कर बनाए गए तालाब और बांध भी सूख गए हैं. इसके चलते पहाड़ों पर निवास करने वाले आदिवासियों को दूषित पानी से ही अपनी प्यास बुझाना पड़ रहा है.
16 गांवों को 7 टैंकरों से पानी
माणिकगढ़ पहाड़ी पर स्थित टाटाकोहाड़, खडकी, रायपुर, नानकपठार, मारोतीगुड़ा, सेवादासनगर, अंतापुर, जोडनघाट, शंकरपठार, मच्छीगुड़ा, येरवा, चलपतगुड़ा, धाबा, वणी, मराईपाटण, रायपल्ली आदि गांवों में जलसंकट हर साल की परंपरा बन गया है. इस बार जिला परिषद ने जलसंकट से जूझ रहे इन गांवों में पानी पहुंचाने के लिए 7 टैंकर लगाए हैं, लेकिन ये टैंकर भी कम पड़ रहे हैं.
पानी के लिए तीन किलोमीटर का सफर
पहाड़ों पर रहनेवाले नागरिकों के लिए सरकार ने ग्रामीण जलापूर्ति योजना, महाजलप्रकल्प, जलस्वराज्य प्रकल्प जैसी कई महत्वाकांक्षी योजनाएं लागू की. फिर भी प्रतिवर्ष लोगों को जलसंकट से दो-चार होना पड़ता है. यहां के नागरिक दिन भर रोजी-रोटी के लिए भटकने के बाद शाम को पीने के पानी के लिए इधर-उधर भटकते रहते हैं. नहाने-धोने और मवेशियों के पीने के लिए पानी के तो और बुरे हाल हैं. महिलाओं को दो से तीन किलोमीटर दूर तक पानी के लिए भटकना पड़ता है.
पानी भी बन गया समस्या
आंध्र-महाराष्ट्र सीमा पर स्थित सेवादासनगर में तो पिछले फरवरी से ही नागरिक पानी की कमी का सामना कर रहे हैं. जंगल के बीच में बसे ग्राम खड़की में आदिवासी कोलाम लोग रहते हैं. वहां के नागरिकों को मूलभूत सुविधाएं तक नसीब नहीं हैं. उन लोगों को शुद्ध और साफ पानी की आपूर्ति के लिए सरकार ने गांव में जलस्वराज्य प्रकल्प लागू किया, लेकिन वह भी बेकार साबित हुआ. गरीबी की रेखा से नीचे जीवन जी रहे मच्छी समाज के लोगों को शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, मकान के साथ ही पानी भी समस्या बना हुआ है. यहां के नागरिकों को अपनी प्यास दूषित पानी से ही बुझाना पड़ता है.