नागपुर – सिकलसेल एनीमिया के मरीजो के लिए भले ही सरकार ने कारगर कदम उठाने की हामी भरी है. लेकिन कई सुविधाओ से सिकलसेल के मरीज आज भी दूर है. सरकार की ओर से इन मरीजो को अपनी दवाइयों के लिए भी अस्पतालों के चक्कर लगाने पड़ते है.
सिकलसेल सोसाइटी ऑफ़ इंडिया के अध्यक्ष संपत रामटेके ने इन मरीजो की व्यथा की जानकारी देते हुए बताया की नागपुर जिले में करीब 15 हजार मरीज सिकलसेल की बिमारी से पीड़ित है. वे जब दूर दराज से यहाँ आते है तो उन्हें दवाई तक नहीं दी जाती. रामटेके ने बताया की 28 दिसम्बर 2016 को ”विकलांग व्यक्ति के अधिकार” का कानून अस्तित्व में आया. 21 प्रकार की विकलांगता में सिकलसेल बिमारी का भी समावेश है. इस कानून के तहत मरीजो का इलाज और उसका उपयोग उचित तरह से हो और उसमे खामी न रहे इस उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए संचालक ”विकलांग व्यक्ति सद्रक्तीकरण विभाग ने आम जनता से शिकायत और सूचना 6 मार्च 2016 को मंगाई थी.
सिकलसेल सोसाइटी ऑफ़ इंडिया की ओर से मरीजो और परिजनों की शिकायत सुनंने के लिए एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। जिसमे 20 सिकलसेल के मरीज, 22 अभिभावको ने हिस्सा लिया. इस दौरान सुनी गई शिकायतों और सुझावों में से प्रमुख तौर पर यह मुद्दे उपस्थित किये गए। प्रमुख शिकायतों का निपटारा 30 दिनों के अंदर किया जाए.
विकलांग राष्ट्रीय शासकीय सभा में 24 विकलांगो का प्रतिनिधितत्व हो. प्रत्येक शिकायतों के लिए स्वतंत्र कोड नंबर, प्राप्ति का महीना व वर्ष और विकलांग का प्रकार दिया जाए. नौकरी के विज्ञापन में सिकलसेल थेलासीमिया व हिमोफिलिया का उल्लेख रहे. सिकल सेल ग्रस्त विकलांग का प्रतिशत मरीज के रक्त में शामिल सिकलसेल के प्रतिशत पर निर्धारित की जाए. यह प्रतिशत (एचपीएलसी) यंत्रद्वारा चेक किया जाए. साथ ही इसके वार्षिक आय के स्लैब 10 हजार से 1 लाख न रखकर 10 हजार से 50 हजार किया जाए.