उन्हें मिलती है बिना गलती सज़ा, अनुवांशिक बीमारी है सिकलसेल।
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चिमुर: पुराने काल में बहुजन, आदिवासी समाज की स्थिति बहुत दयनीय थी। उस समय अज्ञानता के कारण समाज अंधश्रद्धा की बेड़ियों में जकड़ा हुआ समाज था। किसी भी मृत पशु का मांस खाने का प्रमाण लोगों में अधिक था।
उस वक्त वैज्ञानिक दृष्टिकोण नहीं था। बिमारिओं के कारण लोगों की मौत ज्यादा होती थी। देश में नई चिकित्सा प्रणाली आने के कारण आज ज्यादातर बीमारियों का इलाज मुमकिन हो पाया है। लेकिन आज भी सिकलसेल मरीज़ों को उस गुनाह की सजा मिलती है जो उन्होंने नहीं की। कई युवक युवतियों को सिकलसेल इस अनुवांशिक बिमारी का शिकार होना पड़ता है।
भारत के बाकी राज्यों के साथ ही विदर्भ में भी सिकलसेल के मरीज़ है। महाराष्ट्र, तमिलनाडु, आँध्रप्रदेश, ओडिशा, मध्यप्रदेश,गुजरात और सतपुड़ा के डोंगर के आदिवासी बाहुल्य इलाकों में इस बिमारी के मरीज़ ज्यादा मिलते है।
महजाराष्ट्र के नांदुरवार, गडचिरोली और गोंदिया इन आदिवासी जिलों में इस बिमारी का प्रमाण ज्यादा है। सिकलसेल बिमारी को गंभीरता से लेते हुए विभिन्न सरकारी योजनाएं शुरू की है जिससे इन मरीज़ों को मदत हो। सिकलसेल मरीज़ों के लिए मुफ्त सलाह केंद्र और उपचार केंद्र खोले गए है। जगह जगह प्रचार और बैनर के माध्यम से जनजागृति भी कि जा रही है।
सिकलसेल रेड ब्लड सेल्स में होने वाली बिमारी है। मानव शारीर में रेड ब्लड सेल्स और वाइट ब्लड सेल्स होते है। साधारणतः रेड ब्लड सेल्स का आकर गोल होता है लेकिन सिकलसेल बिमारी से ग्रस्त मरीज़ के शारीर के रेड ब्लड सेल्स को ऑक्सीजन नहीं मिलने के कारण वो चपटे और अंडाकार हो जाते है।
सरकार की ओर से इस बिमारी को लेकर जनजागृती की जा रही है। इसके तहत शादी के पहले खून की जांच करने की भी सलाह दी जाती है।
पिड़ित ( सफरर ) व्यक्ती – पिड़ित व्यक्तीको बहुत तकलीफ होती है। उस व्यक्ती के हाँथ पैर और शरीर के जोड़ दर्द देते है। भूख नहीं लगती, पेट में बायीं ओर दर्द होता रहता है ऐसी अनेक समस्याओं से मरीज़ जुझता रहता है। पिड़ित व्यक्ती को नियमीत दवाइयों का सेवन करना पड़ता है। और उन्हें जिंदगी भर दवाईयां शुरू रखनी पड़ती है।
वाहक ( कॅरिअर ) व्यक्ती – इसमें सर्व सामान्य व्यक्ती के खून में सिकलसेल होते है लेकिन उनका प्रमाण बहुत कम मात्रा में होता है उनको तकलीफ नहीं होती है। खून की जाँच करने के बाद भी वह व्यक्ती सिकलसेल बीमारी का वाहक है यह पता नहीं चलता। इस बीमारी की तकलीफ नहीं होने के बावजूद भी वाहक व्यक्ती से आनेवाली पीढी को सिकलसेल की बीमारी हो सकती है इसलिए उस व्यक्ती को वाहक कहा जाता है। अगर एक वाहक युवा की शादी वैसी ही वाहक युवती से होती है तो उन दोनों के सिकलसेल जीन्स उनके बच्चों में आ जाते है। इसलिए उनकी आनेवाली पीढी सिकलसेल बीमारी से ग्रस्त हो सकती है।