Published On : Mon, Apr 14th, 2014

आमगांव: मुरादे पूरी होती है जामखारी हनुमान मंदिर में

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१००
वर्षों से आस्था और विश्वास का केंद्र 

वर्ष भर में आते है ५० हजार से ज्यादा दर्शनार्थी  

Hanuman-1आमगांव.

 तकरीबन १०० वर्ष पुराने इस मंदिर की ख्याती इस प्रकार हुई है की इस मार्ग से आने जानेवाला कोई भी व्यक्ती मंदिर में रूक जाता है। श्री हनुमान की प्रतिमा के सामने कुछ पल रूककर अपना आत्मविश्वास बढ़ाने के साथ साथ प्रभु की दया दृष्टी रहे ये प्रार्थना करता है। मंदिर निर्माण होने से लेकर अब तक मंदिर एक नए रूप में नजर आ रहा है। लेकिन करीबन १०० वर्ष पूर्व यह मंदिर टीन की चादरों से बने एक शेड में था। उसी समय से इस मंदिर के प्रति पुरे जिले में आस्था है।

प्राप्त जानकारी के अनुसार शहर से ५ कि.मी. की दुरी पर स्थित जामखारी हनुमान मंदिर न केवल शहर बल्की समस्त आसपास के तहसील व दूरदराज के हजारों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। जामखारी का सिद्ध हनुमान मंदिर जनता शहर से अपनी कामना पूर्ती के लिए पैदल भी जाते है। जामखारी ग्राम के तालाब के पास बने इस प्राचीन और विशाल मंदिर की एक अलग कहानी है। सूत्रों से प्राप्त जानकारी जे अनुसार लगभग १०० वर्ष पहले आमगांव के जमीनदार मार्तंडराव बहेकार ने तालाब खुदाई के दौरान श्री हनुमान की यह मुर्ती निकाली थी। हनुमान जी की मुर्ती को आमगांव में ले जाकर मंदिर में स्थापित करने का प्रयास किया। लेकिन लाख कोशिश व रुपया बर्बाद करने के बाद भी मूर्ती अपनी जगह से टस से मस नहीं हुई। अंतत: उन्होंने मुर्ती ले जाने का इरादा त्याग दिया और मुर्ती की  उसी जगह पर स्थापना करने का आग्रह जामखारी ग्राम के उस समय के मालगुजार दयाराम विठोबाजी कटरे से किया। बताया जाता है की एक शेड बनाकर मुर्ती को स्थापित करने के लिए उठाया गया तो वह मुर्ती आसानी से उठ गई।

Hanuman-2

तब से इसे प्रभु हनुमान जी की इच्छा मानकर मूर्ति को शेड में स्थापित कर ग्रामीणो  नियमित रूप से पूजा अर्चना शुरू कर दी। उसी दौरान मूर्ति ने सिन्दूर चोला त्याग दिया। उस सिन्दूर चोले का विसर्जन ग्राम नवसारी नदी में किया गया। १९४० में गांव के ज़मींदार दयाराम कटरे ने मंदिर निर्माण कार्य शुरू किया। ग्राम जामखारी के पूर्व सरपंच के मुताबिक़ मंदिर निर्माण में लोहे या सीमेंट कॉंक्रीट का इस्तेमाल नहीं किया गया है। ,बालको सफ़ेद पत्थर, चुना, अलसी और बेल के मिश्रण का उपयोग किया गया। आज भी मंदिर की इमारत जस की तस है और उसकी दीवारें उसी मज़बूती के साथ खड़ी हैं। गौरतलब है की दयाराम कटरे ने मंदिर के दैनिक खर्च और व्यवस्था और पुजारी के जीवन यापन के लिए १० एकड़ भूमि मंदिर के नाम कर दी थी। बाद में मंदिर के निचले हिस्से में भगवान शिवजी का मंदिर बनाया गया।

हर वर्ष कार्तिक पूर्णिमा, हनुमान जयंती, महाशिवरात्रि और नव वर्ष पर नाना प्रकार के आयोजन और धार्मिक अनुष्ठान आयोजित किये जाते है। पिछले कई सालों से आमगांव के साथ साथ पुरे परिसर से यहाँ श्रद्धालु अपनी कामनापूर्ति के लिए आते है। इस मंदिर में हर मंगलवार और शनिवार के दिन भक्तों की भारी भीड़ लगी रहती है।

दूर दराज़ से मंदिर में आते है दर्शनार्थी 

श्रद्धालुओं का मनना है की आजतक यहाँ जो भी आया है वो कभी खाली हाथ नहीं लौटा है। इस सिद्ध मंदिर में दर्शन के लिए लोग दूर दूर से आते हैं।  मान्यता है की इस मदिर में सच्चे दिल से जो भी मांगा जाए वो मिलता है। कई लोगो का अनुभव है की उन्होंने यहाँ जो भी कामना की वो पूरी हुई है।