Published On : Thu, Feb 27th, 2014

जुगाद शिव मंदिर में आज लगेगा भक्तों का मेला; होगा ‘बम बम भोले’ का जयघोष

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यवतमाल जिले के वणी तहसील के जुगाद ग्राम में स्थित लगभग १२०० वर्ष प्राचीन हेमाडपंथी शिवमंदिर पर आज महाशिवरात्री पर शिवभक्तों का भारी जनसैलाब उमड़ेगा। यह मंदिर उत्तर वाहिनी वर्धा और पैनगंगा के तट पर अपना विशाल स्वरुप लिए खड़ा है। इतना विशाल और प्राचीन मंदिर होने के बावजूद भी इस मंदिर का उल्लेख ना तो भारतीय पुरातन ना ही राज्य पुरातन विभाग के पास है। विशेष बात है कि  राज्य के किसी भी सरकारी गैजेट में इसका निर्माण कब और किसने कराया यह स्पष्ट नहीं हो पाया है। जानेमाने इतिहास संशोधक अशोकसिंह ठाकुर के अनुसार यह मंदिर ११ वीं शताब्दी के परमार कालीन युग की अनमोल धरोहर है।

ठाकुर के अनुसार परमार राजा शिव के बड़े भक्त थे, इन्ही परमार राजाओं ने मध्यप्रदेश के भोजपुर में सबसे बड़े शिवलिंग का निर्माण कराया था। इन्ही राजाओं के वशंज विदर्भ में थे जिन्होंने इस मंदिर का निर्माण कराया होगा। जुगाद के शिव मंदिर की विशेषता यह है कि यह मंदिर उत्तर साक्षिण वाहिनी पैनगंगा यहां आकर उत्तरवाहिनी बन जाती है। इसके गर्भगृह में स्थापित शिवलिंग को पातालेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है।  सूरज कि पहली किरण सीधे शिवलिंग पर पड़ती है।  इस मंदिर से वर्धा – पैनगंगा संगम का विहंगम दृश्य साफ़ दिखाई देता है। इस शिवलिंग के वाईमार्ग कि ओर से जुगाद पर ज्योति जलाने के लिए दीवार पर एक प्लेटफार्म बनाया गया है। जहां दीप प्रज्वलित किया जाता है।  जिस दीप का तेल ज्यादा हो जाता है वहीं पर जमा होकर उसकी निकासी बाहरी दीवारों के किनारों से हो जाती थी। इस प्राचीनतम शिवमंदिर का सभामंडप दर्शनीय है। १० खंभों पर खड़ा यह मंदिर पुरे स्तंभों पर सुंदर कलाकृति उकेरी हुई है। दूसरे स्तर पर व्याल याने सिंह की मुर्तियां , तीसरे पर मिश्रित जिसमें व्याल, हंस और मकर का समावेश है। चौथा स्तर गौ की विभिन्न मुद्राएं और पांचवे पर पुष्प है। इस मंदिर के तीनों और शंकर , विष्णू और चंडिका की सुंदर प्रतिमा स्थापित है। इस मंदिर की विशेषता यह भी है की मंदिर में नव दुर्गा की  प्रतिमा एक साथ एक ही पत्थर पर तरासी गयी है। जो कलाकृतियों का बेजोड़ नमूना है। मंदिर जिस नींव पर बना है उस पत्थरों पर गाय की विभिन्न आकृति को अलग – अलग रूप से दर्शाया गया है। उसके ठीक नीचे पत्थरों पर मोर भी विभिन्न मुद्राओं में स्थापित है। यहां अन्य मुर्तियों में गणेश भैरव और शिवलिंग भी देखा जा सकता है। मंदिर के उपरी भाग  में ध्यान केंद्र स्थापित है। उल्लेखनीय है की कई वर्षों से उपेक्षित पड़े इस मंदिर के जीर्णोद्वार का कार्य सन २००३ में घुग्घुस के  तत्कालीन थानेदार पुंडलिक सपकाले, वढा ग्राम के चंद्रकांत पाटील गोहकार, जयसिंह पाटील गोहकार, सुधाकर बोबडे, सामाजिक संस्था चंद्रपुर सोशल अकादमी के गजानन साखरकर, श्रीकांत महुलकर, निरीक्षक तांड्रा, दयाशंकर तिवारी, इबादुल हसन सिद्दीक़ी, ममता खैरे, रेखा गेडाम, प्रतिभा करमनकर , राजु रेड्डी, युवराज घोडपड़े शुरू कराया था।

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वेकोलि की सहायता से सामुदायिक भवन, मंदिर के चारों ओर वाल कम्पाऊंड का निर्माण कराया। खंडहर में तब्दील की ओर से बढ़ रहे इस मंदिर के जीर्णोद्वार में शुरुवात में काफी तकलीफ आई. किंतु जीर्णोद्वार के कार्य जैसे – जैसे आगे बढ़ा समाजसेवी, भाविक स्वेच्छा से जुडते गए और आज यह मंदिर अपने गौरवशाली इतिहास की कहानी बयां कर रहा है।

जीर्णोद्वार शुरू होने के एक वर्ष बाद २००४ से यहां प्रतिवर्ष विशाल मेला लग रहा है।  प्रतिवर्ष मेले में भाविकों की संख्या बढती जा रही है।  इस मंदिर के लिए दो मार्ग है। घुग्घुस – चंद्रपुर मार्ग पर पांढरकवडा  ग्राम से होते हुए तीर्थ क्षेत्र वढा में वर्धा – पैनगंगा में स्नान कर भाविक जुगाद शिव मंदिर में दर्शन को आते है। दूसरा मार्ग घुग्घुस नकोडा होते हुए मुंगोली के कैलाश नगर कॉलोनी से होते हुए इस मंदिर तक पहुंचा जा सकता है। मंदिर कि विशेषता यह है की नारायण नागबली पूजा जोकि गिने चुने स्थानो पर होती है। जिसमें त्र्यंबकेश्वर मंदिर के जो महत्व है उतना ही महत्व इस मंदिर का है। विशेष बात है की इस मंदिर के जीर्णोद्वार में सभी धर्मों के लोगों ने सहयोग दिया है। जो सर्वधर्म समभाव की एक मिसाल है। आज इस मंदिर का जीर्णोद्वार का कार्य लगभग पूरा हो चूका है। वर्षो से उपेक्षित पड़ा यह पुरातन हेमाडपंथी शिवमंदिर आज का विशाल स्वरुप लिये भाविकों के आस्था का केंद्र बना है।

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