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चिमुर.
स्नातक अंशकालीन कर्मचारी पिछले 15 सालों से न्याय की आस में हैं कि कभी तो उन्हें सीधे सरकारी सेवा में शामिल किया जाएगा. पक्ष-विपक्ष कोई तो होगा जो उन्हें न्याय दिलाने के लिए आगे आएगा. परंतु कोई उनकी बात सुननेवाला नहीं है. राज्य सरकार की काम-टालू नीति के चलते ऐसा हो रहा है. एक तरफ तो सरकार इन कर्मचारियों की उपेक्षा कर रही है तो दूसरी ओर बेरोजगारों की फ़ौज भी बढ़ रही है.
पदवीधर अंशकालीन कर्मचारी संघटना ने कहा कि एक तरफ तो सरकारी कर्मचारी अपनी पगार बढाने के लिए संघर्ष करते रहते हैं, तो दूसरी ओर उनकी टेबल पर उनका काम अंशकालीन कर्मचारी करते हैं. छठे वेतन आयोग के बाद अब सातवां वेतन आयोग भी आम जनता और सरकारी कर्मचारियों के बीच दूरी बढ़ाने का ही काम करेगा. संघटना ने अंशकालीन कर्मचारियों की समस्याओं को शीघ्र दूर करने की मांग की है.