नागपुर: जमीन खरीद-फरोख्त के एक मामले में चेक बाउंस होने पर जिला न्यायालय ने उमरेड रोड, दिघोरी पुरानी बस्ती निवासी गिरीश साखरकर की याचिका पर सुनवाई करते हुए आरोपी बिल्डर को दोषी ठहराया है। कोर्ट ने हुडकेश्वर रोड, श्याम नगर निवासी स्वप्न साकार डेवलपर्स के अध्यक्ष भक्तप्रल्हाद शेंबेकर को धारा 138, परक्राम्य लिखत अधिनियम के तहत दोषी मानते हुए धारा 255(2), दंड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत एक वर्ष की साधारण कारावास की सजा सुनाई है।
साथ ही कोर्ट ने बिल्डर को तीन माह के भीतर शिकायतकर्ता को ₹23.53 लाख मुआवजा देने का आदेश भी दिया है। तय समय पर भुगतान न होने की स्थिति में आरोपी को अतिरिक्त एक वर्ष की साधारण कारावास भुगतनी होगी।
जमीन सौदे का विवाद बना धोखाधड़ी का मामला
प्राप्त जानकारी के अनुसार, बिल्डर ने विट्ठल विलासकर और अंजनाबाई साखरकर से पांढुर्ना स्थित 1.62 हेक्टेयर कृषि भूमि ₹64 लाख में खरीदने का एग्रीमेंट किया था। इसमें ₹48 लाख नकद और ₹16 लाख का पोस्ट डेटेड चेक दिया गया था।
बाद में बिल्डर ने गिरीश साखरकर से संपर्क कर ₹23 लाख प्रति एकड़ की दर से 0.81 हेक्टेयर भूमि ₹46 लाख में बेचने की पेशकश की। भूमि मालिकों की सहमति से बिक्री पत्र भी तैयार किया गया।
भूमि मालिकों ने बेच दी जमीन, चेक बाउंस हुआ
बाद में शिकायतकर्ता को पता चला कि बिल्डर न तो एग्रीमेंट की शर्तों का पालन कर रहा था और न ही चेक वैध निकला। भूमि मालिकों ने विवादित भूमि को किसी अन्य को बेच दिया। शिकायतकर्ता ने ओम शिवकृपा को.ऑपरेटिव हाउसिंग सोसाइटी लिमिटेड के नाम से उक्त भूमि के लिए बुकिंग राशि भी वसूली थी।
बिल्डर से शिकायत पर ₹26 लाख लौटाने पर सहमति बनी और समझौता रद्द करने हेतु 20 नवंबर 2011 को ₹13 लाख और 20 मार्च 2012 को ₹13 लाख के दो चेक दिए गए।
न तो चेक क्लियर हुआ, न ही नोटिस का जवाब
पहला चेक बैंक में पेश करने पर बाउंस हो गया। शिकायतकर्ता ने बिल्डर को कानूनी नोटिस भेजा, लेकिन वह भी वापस आ गया। इसके बाद न्यायालय में केस दर्ज किया गया। लंबी सुनवाई के बाद अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के संदर्भों का हवाला देते हुए आरोपी को दोषी करार दिया।
कोर्ट ने कहा कि बिल्डर को नोटिस से लेकर अंतिम निर्णय तक भुगतान का पर्याप्त अवसर दिया गया, पर उसने राशि लौटाने में विफलता दिखाई। कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि, “रियल एस्टेट में धोखाधड़ी के मामलों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है, अतः बिना मंशा के चेक जारी करने की प्रवृत्ति पर रोक जरूरी है।”