बच्चे नहीं मिल रहे जिला परिषद और नगर परिषद की स्कूलों को
कलमेश्वर
शिक्षा के बाजारीकरण और अंग्रेजी शिक्षा के बढ़ते चलन के चलते जिला परिषद और नगर परिषद की स्कूलें अपने आखरी दिन गिन रही हैं. इन स्कूलों के शिक्षक बच्चों के लिए गली-मोहल्लों में घूम रहे हैं. इसमें मजे की बात यह है कि जो शिक्षक अपनी नौकरी बचाने के लिए गली-मोहल्लों में घूम-घूमकर विद्यार्थियों को जुटा रहे हैं, उन्हीं के बच्चे आज अंग्रेजी स्कूलों में एबीसीडी और मम्मी-डैडी पढ़ना सीख रहे हैं. यानी माना जाए कि जिला परिषद और नगर परिषद की स्कूलों का शिक्षा का स्तर गिर गया है अथवा वे भी अपने बच्चों को मराठी-हिंदी में शिक्षण दिलाना जरूरी नहीं समझते?
नौकरी खोने की नौबत
हर बच्चे को शिक्षा का अधिकार देने के उद्देश्य से सरकार ने हर गांव, शहर में भारी मात्रा में स्कूल खोलने की अनुमति दी. इसका परिणाम यह हुआ कि जगह-जगह अंग्रेजी माध्यम के स्कूल खुल गए हैं. जिधर-उधर अंग्रेजी की हवा बहने के कारण अभिभावकों का झुकाव भी अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों की तरफ ही है. जिला परिषद और नगर परिषद की स्कूलों में बच्चे नहीं मिलने के कारण यहां शिक्षक अतिरिक्त हो रहे हैं और उन पर तबादला अथवा नौकरी खोने की नौबत आ रही है.
सरकारी कर्मचारियों के बच्चे पढ़ें मराठी
मजे की बात यह कि जिला परिषद और नगर परिषद की स्कूलों के अधिकांश शिक्षकों के बच्चों के महंगे अंग्रेजी स्कूलों में पढ़ने के कारण वे शहरों में रहने लगे हैं. वहीं से गांवों-कस्बों के स्कूलों में आना-जाना करते हैं. बताया जाता है कि ऐसे ही शिक्षकों के कारण इन स्कूलों की यह दशा हो रही है. वे खाते तो मराठी-हिंदी की हैं, मगर बच्चों को सिखाते अंग्रेजी हैं. कहा जाता है कि अगर सरकारी कर्मचारी और शिक्षकों के बच्चे मराठी और हिंदी माध्यम के स्कूलों में पढ़ने लगें तो इन क्षेत्रीय भाषाओं की दशा में निश्चित रूप से सुधार होगा. लेकिन सचमुच क्या ऐसा होगा? यह बड़ा सवाल है.
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