Published On : Sat, Apr 26th, 2014

विरुर : बैलगाड़ी पर आज भी लाये ले जाये जा रहे मरीज़

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मूलभूत सुविधाओं को तरसते कोलाम आदिवासी जाती के लोग

विरुर

दुनिया वैश्विक गांव के रूप में बदल रही है. देश विदेश में सिर्फ एक ईमेल का फासला रह गया है। लेकिन चंद्रपुर का आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र सरकार की योजनाओं और मूलभूत सुविधाओं से कोसो दूर है. औद्योगिक क्षेत्र में बड़ी तरक्की करने वाले और प्रदुषण में पहला नंबर रखने वाले चंद्रपुर जिले के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र लाइनगुड़ा में कोलाम आदिवासी समाज के लोग आज भी दरिद्रता में जीने को मजबूर है. चाँद पर पहुंच चुके हमारे देश के कई हिस्सों में आज भी मूलभूत सुविधाएं नहीं पहुंच पाई है इसका ये साक्ष्य है . सरकार शिक्षा और आरोग्य सुविधाओं को जन जन तक पहुंचाने का दावा करती है लेकिन सरकार के ये दावे खोखले साबित हो रहे है.

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आँध्रप्रदेश की सीमा पर राजुरा तालुका का ये छोटा सा गांव है लाइनगुड़ा. इस गांव में रास्ते, बिजली, पानी के पाइप ऐसी कोइ सुविधा नही है. इतना ही नहीं तो इस गांव मे आज़ादी के इतने सालों बाद भी राज्य परिवहन मंडल की बस तक नही पहुंची है और ना हि आरोग्य वयवस्था। नक्सल प्रभावित लेकिन प्राक़ृतिक सौन्दर्य से भरपूर इस गांव तक पहुंचना बेहद कठिन है. यहाँ पहुचने के लिए चार किलोमीटर का पहाड़ी जंगल पार करना पड्ता है जीससे पैदल चलकर जाना भी एक टेढ़ी खीर है.
adiwasi

बैलगाड़ी पर ले जाए जाते हैं मरीज़
शहरों में मरीज़ों को अस्पताल ले जाने के लिए एम्बुलेंस की सुविधा होती है लेकिन इस आदिवासी क्षेत्र में विडंबना ऐसी है की इस आधुनिक युग में भी मरीज़ों को बैलगाड़ी पर लादकर ले जाना पद रहा है. यहाँ आरोग्य सुविधा नहीं पहुंची है और ईनके अभाव मे कई लोगों को अपनी जान तक गवानी पडी है.

नाले का पानी पीने को मजबूर
पिछले 50 सालों से कोलाम आदिवासी नाले का पानी पीकर जीवन जीने को मजबूर हैं. एक तरफ करोडो रूपए खर्च करके लोकसभा का चुनाव लड़ा जा रहा है और दूसरी तरफ़ जिले के आखरी कोने पर स्थित कोलाम आदिवादी समाज को पिने का स्वच्छ पानी तक नसीब नहीं हो रहा है. प्रशासन ने यहाँ एक हैंडपंप लगाया जरूर है लेकिन उसमे से भी दूषित पानी हि आता है और ये लोग नाले का पानी पीने को मजबूर हैं. दूषित पानी पीने के कारन इस आदिवासी समाज के लोगों को बीमारियां घेर रही है.

शिक्षा से वंचित आदिवासी समाज
इस क्षेत्र में चौथी तक ही स्कूल है और ईससे आगे की शीक्षा के लिये विरुर स्टेशन तक जाना पड़ता है. लेकिन 10 किलोमीटर का अतिदुर्गम मार्ग होने के कारन आने जाने के लिए कोइ साधन नहीं है. विद्यार्थियों को वहां पैदल ही जाना पडता है. शिक्षण की ललक होते हुये भी मुश्किल रस्ता और बस की कोई सुविधा उपलब्ध ना होने के कारन देश के भविष्य कहे जाने वाले इन विद्यार्थियों को मजबूरन कलम छोड़ना पड रहा है.

बिजली के खम्बे है लेकिन स्ट्रीट लाइट नहीं
सैसालों से यहाँ बिजली नहीं थी लेकिन कुछ समय पहले ही गांव मे बिजलि आई है. वो भी कभी रहती है कभी नही। इक्का दुक्का जगह बिजली के खंबे तो हैं पर बल्ब नही लगाये जाने से उनका कोइ उपयोग नही है। ये लोग अँधेरे में जीवन जीने को मजबूर है.

आज़ादी के इतने साल बाद भी ये क्षेत्र विकास से वंचित है और दरिद्री का जीवण जीने को मजबूर है ये आदिवासी। अब सवाल ये है की विकास जन जन तक पहचाने के बड़े बड़े दावे करने वाली हमारी सरकार की विकासात्मक योजनाएं यहाँ तक क्यूँ नहीं पहुंची ?

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