Published On : Thu, Sep 27th, 2018

धार्मिक अतिक्रमण का वर्गीकरण एक माह में हलफ़नामे के देने का आदेश

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नागपुर: धार्मिक अतिक्रमणों को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा आदेश दिए जाने के बाद राज्य सरकार की ओर से इस संदर्भ में नीति निर्धारित कर अध्यादेश तो जारी किया गया, लेकिन अध्यादेश में दिए गए दिशा निर्देश का पालन नहीं किया गया, जिससे अब मनपा द्वारा तैयार की गई धार्मिक अतिक्रमणों की सूची रद्द कर अध्यादेश के अनुसार मनपा स्तर की समिति के माध्यम से नए सिरे से सार्वजनिक उपयोग की जमीन या खुले मैदान पर के धार्मिक स्थलों का वर्गीकरण करने हेतु 1 माह में नई सूची तैयार करने के आदेश जारी करते हुए अदालत ने फुटपाथ और सड़कों के किनारे के सभी धार्मिक अतिक्रमणों को साफ करने और हलफनामा देने के आदेश दिए थे.

बुधवार को सुनवाई के दौरान मनपा और प्रन्यास की ओर से कुछ समस्याओं का उल्लेख करते ही न्यायाधीश भूषण गवई और न्यायाधीश रोहित देव ने हर हाल में शुक्रवार की दोपहर 2.30 बजे तक इस तरह के सभी धार्मिक अतिक्रमणों का सफाया करने के मौखिक आदेश जारी किए. याचिकाकर्ता मनोहर खोरगडे की ओर से अधि. फिरदौस मिर्जा, सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सुनील मनोहर और मनपा की ओर से अधि. सुधीर पुराणिक ने पैरवी की.

बुधवार को सुनवाई के दौरान मनपा की ओर से पैरवी कर रहे अधि. सुधीर पुराणिक ने अदालत को बताया कि पुलिस का पुख्ता बंदोबस्त नहीं मिलने के कारण यातायात को बाधा पहुंचा रहे सड़कों के किनारे तथा फुटपाथों पर से धार्मिक अतिक्रमण नहीं हटाए जा सके. इसका पुरजोर विरोध करते हुए राज्य सरकार की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता सुनील मनोहर ने बताया कि मनपा की ओर से जब भी सुरक्षा मांगी गई, पुलिस विभाग की ओर से पुख्ता बंदोबस्त दिया गया है. दोनों पक्षों में चल रहे आरोप-प्रत्यारोप पर टिप्पणी करने से इंकार करते हुए अदालत ने यदि पुलिस सुरक्षा नहीं मिल रही हो, तो एसआरपी लगाकर इन धार्मिक अतिक्रमणों को हटाने के कड़े मौखिक आदेश दिए.

बुधवार को सुनवाई के दौरान प्रन्यास की ओर से अदालत को बताया गया कि उनके अधिकार क्षेत्र में सड़कों के किनारे या फुटपाथों पर धार्मिक अतिक्रमण तो है, लेकिन ये अतिक्रमण वर्ष 1960 के पहले के होने से उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं की जा सकी है. जिस पर अदालत का मानना था कि गत आदेश में इसे लेकर स्पष्ट किया गया है जिसमें यातायात को बाधित कर रहे ऐसे धार्मिक अतिक्रमणों को कोई राहत नहीं है.

यदि अदालत के आदेश समझ नहीं आ रहा हो, तो क्या प्रन्यास सभापति को अदालत में बुलाकर इसकी जानकारी दी जाए? इसका खुलासा करने को प्रन्यास से कहा गया. सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी कर रहे अधि. मिर्जा का मानना था कि मनपा और प्रन्यास भले ही धार्मिक अतिक्रमणों को हटाने का दावा कर रही हो, लेकिन शहर की अनेक सड़कों पर अभी भी धार्मिक अतिक्रमण बने हुए हैं.

अदालत ने गत आदेश में स्पष्ट किया कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 29 सितंबर 2009 को आदेश जारी किए गए, जिससे इसके बाद के किसी भी धार्मिक स्थलों को राहत नहीं दी जानी चाहिए. इसके अलावा यातायात को बाधित करनेवाले सड़कों और फुटपाथों पर किसी भी तरह का धार्मिक अतिक्रमण स्वीकृत नहीं होने के स्पष्ट आदेश मनपा और प्रन्यास को दिए थे. अदालत ने इस संदर्भ में मनपा और प्रन्यास को शपथपत्र दायर करने के आदेश भी दिए थे जिसके अनुसार बुधवार को हलफनामा दायर किया गया.