Published On : Sat, Sep 9th, 2017

हिंदी भाषा में अलंकारिता जरुरी है नहीं तो पढ़ने की इच्छा नहीं होती – डॉ. काणे

Nagpur VC Siddharthavinayaka P. Kane
नागपुर: अन्तर्राष्ट्रीय शोध संघोष्ठी एवं भारतीय हिंदी परिषद् का 43वां अधिवेशन शनिवार को सम्पन्न हुआ. तीन दिन तक चले इस अधिवेशन में हिंदी और हिंदी साहित्य पर विचार और मंथन किया गया.

इस समापन समारोह में प्रमुख रूप से डॉ. सिध्दार्थविनायक काणे, संगोष्ठी संयोजक डॉ. मनोज पाण्डेय, वर्धा के महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के प्रति -कुलपति प्रोफेसर आनंदवर्धन शर्मा, राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार पूरनचंद्र मेश्राम प्रमुख रूप से मौजूद थे.

इस दौरान काणे ने कहा कि भले ही वे मराठी भाषी हैं लेकिन हिंदी साहित्य से भी उन्हें प्रेम है. उन्होंने कहा कि भाषा को उचित व्याकरण के साथ लिखे जाने से उसे पढ़नेवाले को भी अच्छा लगेगा. साहित्य में अगर अलंकार न हो तो उसे पढ़ने में मजा नहीं आता है. साहित्य को अमर रखने का काम संगोष्ठी द्वारा ही संभव है.

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मनोज पांडेय ने इस दौरान कहा कि कई लोगों का कहना है कि हिंदी सम्मलेन में विदेशी नहीं आए हैं. लेकिन उन्हें कार्यक्रम में बुलाने के लिए ज्यादा खर्च आता है, जो मुमकिन नहीं है. इसलिए जो विदेशी हमारे देश में ही मौजूद थे उन्हें ही यहां पर आमंत्रित किया गया है. इन तीन दिनों में यहां 6 विभिन्न सत्रों का आयोजन किया गया था. जिसमें हिंदी साहित्य और विभिन्न विषयों को लेकर विद्वानों के बिच चर्चा के साथ बहस भी हुई. उन्होंने कहा कि इस तरह के आयोजन आनेवाले समय में और भी किए जाएंगे.

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