Published On : Fri, Aug 25th, 2017

बिना लाल निशान के बीकीं पीओपी मूर्तियां, नहीं रहा प्रशासन का ख्याल

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नागपुर: गणेशोत्सव की तैयारियों को लेकर श्रद्धालुओं में खासा उत्साह नजर आ रहा है. वहीं बाजारों में भी एक से बढ़कर एक आकर्षक मूतियां नजर आ रही हैं. मनपा प्रशासन द्वारा दुकानदारों से मूर्ति बेचने संबंधी एक आवेदन मंगवाया था, जिसके तहत सभी दुकानदारों को पीओपी मूर्तियों को लाल रंग की निशानदेही देना अनिवार्य किया गया था. साथ ही पीओपी मूर्तियों के विक्रेताओं को विसर्जन किसी भी नैसर्गिक स्त्रोत में नहीं करने जैसी सूचनाओं के फलक लगाने अनिवार्य किए गए थे.

लेकिन शहर के मुख्य बाजार चितार ओली सहित सभी क्षेत्रों में लगी दुकानों में ऐसे कोई सावधानियां बरतने चिन्ह दिखाई नहीं दिए. इससे पीओपी और मिट्टी की मूर्तियों में अंतर कर पाना मुश्किल हो गया है. याद रहे कि पीओपी की मूर्तियां पानी में घुल नहीं पाती हैं, जिसके चलते तालाबों की स्थिति बिगड़ने के साथ ही जलचरों पर असर पड़ता है. इसी को देखते हुए मनपा ने पीओपी मूर्तियों को लाल रंग से क्रास करने के लिए कहा था.


लेकिन ज्यादातर दुकानदारों द्वारा इस नियम का पालन नहीं किया गया. जिससे विसर्जन के दौरान एक बार फिर प्राकृतिक जल स्रोतों अर्थात तालाबों की स्थिति बिगड़ने का खतरा मंडराने लगा है. चितारोली में जब देखा गया तो पाया गया की किसी भी पीओपी की मूर्तियों पर लाल निशान नहीं लगाया गया है. जिसके कारण इस वर्ष भी पीओपी की मूर्तियां मिटटी की मूर्तियों के नाम से बिकीं. धरमपेठ झोन में कुछ जगहों पर लाल निशान मूर्तियों पर नहीं होने की वजह से विक्रेताओं से जुर्माना वसूला गया है. लेकिन यह कार्रवाई केवल कुछ ही विक्रेताओं पर की गई. जबकि इस समय हजारों विक्रेता बिना लाल निशान के पीओपी की मुर्तियां धड़ल्ले से बेचते रहे.

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पर्यावरणवादी संस्था ग्रीन विजिल के संस्थापक कौस्तुभ चटर्जी ने बताया कि पीओपी पर अगर मनपा प्रशासन गंभीर है तो गणेश चतुर्थी के छह महीने पहले से ही पीओपी की मूर्तियों पर रोक लगानी चाहिए. एक बार पीओपी की मुर्तियां बाजार में आ गईं तो उसे बेचने से रोकना नामुमकिन है. उन्होंने बताया की इस बार पीओपी, यवतमाल की लाल मिट्टी, पेपर पल्प इन तीनों के मिश्रण से बनाई गई मुर्तियां हैं. जो पानी में नहीं घुलेगी. चटर्जी ने नाराजगी जताते हुए बताया कि पीओपी की मूर्तियों पर लाल निशान नहीं होने के कारण विसर्जन के दौरान पर्यावरणवादी संस्थाओं को काफी मुश्किलों का सामना करना होगा. क्योकि निशान नहीं होने से मूर्तियों को विसर्जन करते समय जब नागरिकों से कहेंगे कि कृत्रिम तालाब में मूर्तियों का विसर्जन करे तो वे नहीं मानेंगे और कहेंगे कि यह तो मिट्टी की मूर्ति है. जिससे इस बार विसर्जन में काफी परेशानी होगी.

इस बारे में जब नागपुर महानगर पालिका के स्वास्थ अधिकारी डॉ. प्रदीप दासरवार से संपर्क किया गया तो उन्होंने कोई प्रतिसाद नहीं दिया.

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