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नागपुर: केंद्र सरकार द्वारा शहरों की स्वच्छता व्यवस्था को लेकर कराए गए सर्वे में नागपुर शहर को 137वां रैंक मिला था. इस रैंकिंग ने ‘क्लीन नागपुर’ के दावों की हवा खोल कर रख दी थी। इसे लेकर मनपा के विपक्षी दल को सत्ताधारी भाजपा सरकार की जमकर आलोचना करने का मौका दे दिया। सत्ताधारी दल की कार्यशैली पर निशाना भी निशाना साधा गया था. लेकिन ऐसा पहली बार नहीं हो रहा। स्वच्छता सर्वेक्षण में पिछली बार 2015 में भी नागपुर बहुत पिछड़ गया था। वर्ष 2015 में 476 शहरों में से नागपुर का रैंक 256वां था. 2016 में देश के 73 शहरों का सर्वे किया गया था. जिसमें नागपुर शहर का 20वां रैंक रहा. इस वर्ष 2017 में 2000 गुणों में से नागपुर को 1158 गुण मिले जिससे रैंकिग खिसकर 137 वें पर जा पहुंची। हालांकि 2015 के मुकाबले रैंकिंग में भले ही सुधार दिखाई देता है, लेकिन अब भी यह रैंकिंग शहर को शर्मिंदगी की दहलीज पर ला खड़ा करता है।
किस श्रेणी में कितने गुण
शहर में सफाई को लेकर केंद्र सरकार की ओर से सभी महानगरपालिकाओं को प्रश्नवाली दी गई थी. जिसे महानगरपालिका स्वयं घोषणापत्र ( मुन्सिपल सेल्फ डिक्लेरेशन ) कहा जाता है. इसमें महानगर पालिका को अपने शहर में किए गए स्वच्छता से सम्बंधित कार्यो की जानकारी देनी होती है. नागपुर महानगर पालिका की दी गई जानकारी के आधार पर शहर को 900 में से कुल 460 गुण दिए गए हैं. ऑनसाईट ऑब्जरवेशन(ऑनसाइट अवलोकन) के लिए केंद्र सरकार की ओर से दिल्ली से एक टीम सर्वे के िलए नागपुर आई थी। यह टीम शहर में तीन दिनों तक रही. उस टीम की ओर से शहर के विभिन्न स्थलों का दौरा किया गया था. जिसमे भांडेवाडी डंपिंग यार्ड भी शामिल था. इस ऑब्जरवेशन सर्वे में टीम की ओर से 500 में से 320 गुण दिए गए थे. इस टीम को नागरिक प्रतिक्रिया (सिटीजन फीडबैक) जुटानी थी। टीम ने शहर के नागरिकों से स्वच्छा को लेकर प्रतिक्र्याएं भी जुटाई. इस दौरान टीम तीन दिनों तक शहर के विभिन्न स्थलों का जायजा लेते हुए दनता से प्रतिक्रिया लेती रही।
कहां रह गई कमी
सबसे बड़ी बात यह है कि तीन सदयस टीम जो नागपुर शहर पहुंची थी. उस टीम ने डेढ़ दिन में ही शहर के विभिन्न जगहों का दौरा किया. इस दौरे में टीम ने शहर के नागरिकों से डेढ़ दिन में ही प्रतिक्रिया भी जुटा ली। लेकिन जानकार इस पर अचंभा व्यक्त कर रहे हैं। अनुमान के मुताबिक अगर डेढ़ दिन में शहर के नागरिकों से दिनभर भी प्रतिक्रिया ली जाए तो भी मुश्किल से तीन या चार हजार नागरिकों से ही मिलना संभव है। ऐसे में सिटीजन फीडबैक में हमें 600 में से 302 गुण मिले. जो कहीं न कहीं गलत है और इसमें हम पीछे रह गए. सॉलिड वेस्ट प्रोसेसिंग (घन कचरा प्रसंस्करण) के लिए हमारे पास कोई ठोस उपाययोजना नहीं है. इसमें भी हम पीछे रह गए. खुले में शौच और शहर के शौचालय का जब सदयसों ने जायजा लिया तो इसमें भी हमें कम गुण मिले. सोशल मीडिया और कंप्यूटर द्वारा जनजागृति में भी हम बहुत पीछे रह गए. इन सभी कारणों की वजह से हम अपना रैंक ऊपर नहीं ला पाए.
पर्यावरणविदों की राय
शहर के ग्रीन विजिल संस्था के संस्थापक कौस्तुभ चटर्जी इस मसले को लेकर कहते हैं कि शहर की रैंकिंग इसलिए निचे आई है क्योंकि सिटीजन फीडबैक लेने में कही ना कही दिल्ली की टीम कम पड़ गई. शहर की जनसंख्या के आधार पर प्रत्येक व्यक्ति को टीम को चर्चा करनी चाहिए थी. टीम की ओर से यह दौरा तीन दिवसीय था. जिसमे उन्होंने केवल डेढ़ दिन ही शहर के नागरिकों के लिए रखा. जिसमे उन्होंने गिने चुने नागरिकों से चर्चा की. लिहाजा टीम का दौरा तीन दिन ना होकर कम से कम गस से बारह दिन का होना चाहिए था. अगर यह दौरा दस दिनों का होता तो परिणाम बेहतर होने के कयास लगाए जा रहे हैं। नागपुर के इस हश्र के िलए चटर्जी ने भांडेवाडी स्थित ट्रीटमेंट की अव्यवस्था को एक बड़ा कारण माना है।








