
गोंदिया। चुनाव के वक्त राजनीतिक दल चाहे जितने बड़े-बड़े दावे कर लें- निष्ठा, कार्य, ईमानदारी की दुहाई दें लेकिन जमीनी हकीकत एक बार फिर बेनकाब हो गई। गोंदिया नगर परिषद के इस चुनाव ने साफ संदेश दे दिया कि “जिसने जाति पढ़ ली, वही बाज़ी मार ले गया।” भाजपा ने टिकट बंटवारे में सामाजिक न्याय और कुनबी समाज को अपेक्षित प्राथमिकता नहीं दी। नतीजा सामने है सीटें घटीं , बहुमत के जादुई आंकड़े से 5 कदम दूर हो गए और अध्यक्ष पद भी हाथ से निकल गया।
वहीं दूसरी ओर कांग्रेस ने सामाजिक समीकरणों को साधा, हर वर्ग को जोड़ने की रणनीति अपनाई और परिणामस्वरूप 14 सीटों पर कब्ज़ा , अध्यक्ष की कुर्सी भी कांग्रेस के खाते में चली गई। भाजपा के अध्यक्ष पद उम्मीदवार कशिश जायसवाल को 24,552 वोट हासिल हुए जबकि कांग्रेस प्रत्याशी सचिन शेंडे इन्होंने 27,898 वोट लेकर धमाकेदार जीत दर्ज की और अपने प्रतिद्वंद्वी को 3346 वोटों से परास्त किया।
कटरे फैक्टर: जिसने कमल की जड़ काट दी
चुनाव की सबसे चौंकाने वाली कहानी रही शिवसेना (शिंदे गुट) की। जैसे ही पोवार समाज के डॉ. प्रशांत कटरे का भाजपा से टिकट कटा, शिवसेना ने बिना देर किए उन्हें अपना उम्मीदवार बना दिया। भाजपा जिसे पहले से दिन से ही 3000 वोटों का खिलाड़ी मानकर चल रही थी, वही डॉ. कटरे भाजपा प्रत्याशी कशिश जायसवाल की हार की सबसे बड़ी वजह बन गए।
यह उम्दा प्रदर्शन धनुष-बाण सिंबल का नहीं था बल्कि व्यक्तिगत साफ-सुथरी छवि, कट्टर भाजपा-आरएसएस पृष्ठभूमि और पोवार समाज में मजबूत पकड़ का नतीजा था। डॉ. कटरे ने भाजपा के परंपरागत वोट बैंक में ऐसी सेंध लगाई कि कमल मुरझा गया , पंजा खिल उठा और 11, 623 वोट हासिल कर डॉ. कटरे ने सभी राजनीतिक पंडितों को चौंका दिया।
समीकरण साधे कांग्रेस ने , बीजेपी रह गई पीछे
इस चुनाव में जाति का गणित चला , कांग्रेस ने समीकरण साधे इसलिए अध्यक्ष की दौड़ में कांग्रेस को कुर्सी नसीब हो गई और भाजपा रह गई पीछे, भाजपा का अपने बूते सत्ता पर काबिज होने का सपना चूर-चूर हो गया वह स्पष्ट बहुमत के आंकड़े से दूर हो गई वहीं डॉ. कटरे ने शिवसेना (शिंदे गुट) को तीसरे स्थान पर ला खड़ा किया तथा राष्ट्रवादी कांग्रेस ( अजीत गुट ) की प्रत्याशी डॉ माधुरी नासरे 8207 वोट लेकर चौथे पायदान पर खिसक गई , बीएसपी उम्मीदवार अजय पडोले 3554 वोट और आम आदमी पार्टी उम्मीदवार उमेश दमाहे 487 वोट , अपनी जमानत तक नहीं बचा सके।नोटा बटन को आम आदमी पार्टी से अधिक 778 का समर्थन मिला है।इस चुनाव ने एक बार फिर साबित कर दिया-नारे बदल सकते हैं, चेहरे बदल सकते हैं…लेकिन चुनाव जीतने की चाबी आज भी ‘सामाजिक समीकरण’ के ही हाथ में है।
सड़कों पर उतरा जीत का जश्न , गुलाल और आतिशबाजी
निकाय चुनाव में जीत मिलते ही गोंदिया, तिरोडा, गोरेगांव और सालेकसा की सड़कों पर जश्न फूट पड़ा।हर गली-नुक्कड़ से ढोल-नगाड़ों की गूंज, डीजे की धुनों पर विजयी उम्मीदवारों और कार्यकर्ताओं के थिरकते कदम माहौल को पूरी तरह चुनावी रंग में रंगते नजर आए। जीत की खुशी में खूब अबीर-गुलाल उड़ा, तो वहीं मोहल्लों में रात 12 बजे तक आतिशबाज़ी की गूंज सुनाई देती रही पूरा इलाका उत्सव स्थल में तब्दील हो गया।
विजय के इस जश्न को मटन-चिकन की पार्टियों ने और भी खास बना दिया समर्थकों ने जीत का स्वाद गीत-संगीत और दावत के साथ मनाया।
बता दें कि गोंदिया नगर परिषद में किसी दल को स्पष्ट जन आधार नहीं मिला ।भाजपा 18 ,कांग्रेस 14 , राष्ट्रवादी (अजीत गुट ) 5 , बीएसपी 2 , और ऊबाठा को 2 सीटें नसीब हुई है।
एक वोट की कीमत समझो.. बाबू
गोंदिया नगर परिषद चुनाव में प्रभाग क्रमांक 9 ( अ) से शिवसेना ( ऊबाठा ) की उम्मीदवार दीपा सुनील सहारे ने ‘ मशाल ‘ चुनाव चिन्ह से जीत का परचम लहराया है उनके लिए जीत इतनी भी आसान नहीं थी।दिलचस्प बात यह है कि दीपा सहारे ने अपने प्रतिद्वंदी भाजपा उम्मीदवार कु. निहारिका रविंद्र पारधी को मात्र एक वोट के अंतर से हराया है।इस सीट के लिए भाजपा और ऊबाठा में कड़ी प्रतिष्ठा की लड़ाई थी लेकिन दोनों महिला उम्मीदवारों के लिए जीत आसान नहीं थी।
इस बड़े और कड़े मुकाबले में दीपा सहारे को 1342 वोट तथा निहारिका पारधी को 1341 वोट मिले हैं , सिर्फ एक वोट के अंतर से जीत हासिल कर दीपा सहारे ने जहां सबको चौंका दिया है वहीं इस जीत ने साबित कर दिया कि चुनाव में एक-एक मतदाता की कीमत क्या होती है।अगली बार कोई अभिमान और घमंड में डूबा प्रत्याशी यह कहे कि तुम्हारे एक वोट न देने से क्या फर्क पड़ेगा ? तो उसे इस ऐतिहासिक जीत के बारे में जरूर बताना।
रवि आर्य










