गोंदिया: दूध का उचित दाम दो , नहीं तो देशव्यापी आंदोलन-सांसद पडोले की चेतावनी हम तब तक चुप नहीं बैठेंगे जब तक दूध उत्पादक किसानों को उनका हक नहीं मिलता ,संसद परिसर में गूंजा दुग्ध उत्पादक किसानों का मुद्दा देशभर में दुग्ध उत्पादक किसानों की लगातार बढ़ती परेशानी अब संसद तक पहुंच गई है।
आज 19 अगस्त मंगलवार को संसद परिसर में महाराष्ट्र के कई सांसदों ने किसानों के हक़ की आवाज़ बुलंद करते हुए विरोध प्रदर्शन किया। सांसदों ने दूध के डिब्बे साथ लाए और मग से दूध केन में धार लाकर सरकार का ध्यान इस गंभीर मुद्दे की ओर आकर्षित किया।
दूध पाउडर निर्यात शुरू करो , मिलावट रोको ?
महाराष्ट्र के सांसदों ने साफ कहा कि दुग्ध उत्पादक किसानों को अब और नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।
उनकी तीन प्रमुख माँगें हैं -दूध का उचित मूल्य मिले ?
किसानों को उत्पादन लागत से भी कम दाम मिलने से वे आर्थिक संकट में हैं। दूध पाउडर का निर्यात शुरू हो , निर्यात रुका होने से बाज़ार में दूध पाउडर का स्टॉक जमा है और किसानों को घाटा उठाना पड़ रहा है।दूध में मिलावट रोकने के लिए कड़े कानून और कार्रवाई का प्रावधान सुनिश्चित किया जाए , ताकि उपभोक्ता और किसान दोनों का हक़ सुरक्षित रहे।
किसानों की लड़ाई संसद तक पहुंची
सांसदों ने कहा कि किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य दिलाना सिर्फ़ आर्थिक मुद्दा नहीं, बल्कि उनका संवैधानिक अधिकार है।
दूध उत्पादक किसान दिन-रात मेहनत कर रहे हैं, लेकिन उन्हें लागत के बराबर भी दाम नहीं मिल रहा।
संसद भवन परिसर में विरोध करने वाले इंडिया गठबंधन सांसदों ने केंद्र सरकार को स्पष्ट चेतावनी दी -अगर सरकार ने तत्काल निर्णय लेकर किसानों की समस्याओं का हल नहीं निकाला और निर्यात सहित दूध मूल्य पर ठोस नीति नहीं बनाई
तो देशव्यापी आंदोलन शुरू किया जाएगा।
इंडिया गठबंधन के यह सांसद हुए विरोध में शामिल
इस विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व गोंदिया-भंडारा जिले के सांसद डॉ. प्रशांत पडोले सहित नीलेश लंका, शोभाताई बच्चाव, अरविंद सावंत, प्रियंका चतुर्वेदी, वर्षा गायकवाड़, नामदेव किरसान, बलवंत वानखेड़े, डॉ. कल्याण काले और श्याम कुमार बर्वे समेत कई अन्य सांसदों ने किया।
सांसदों ने किसानों की ओर से आवाज़ उठाते हुए कहा –
हम तब तक चुप नहीं बैठेंगे, जब तक किसानों को उनका हक़ नहीं मिलता।”
यह विरोध प्रदर्शन किसानों की जमीनी परेशानियों को सीधे संसद तक पहुंचाने की कोशिश है, जिससे सरकार पर तुरंत ठोस निर्णय लेने का दबाव बने।
रवि आर्य