नागपुर: एक अहम खुलासे में, सिंचाई विभाग ने बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ में शपथपत्र दायर कर यह पुष्टि की है कि स्वामी विवेकानंद की प्रतिमा सीधे अंबाझरी बांध के स्पिल चैनल (जल निकासी मार्ग) पर बनाई गई है — जो बाढ़ के समय पानी की निकासी के लिए एक प्रमुख संरचना है। इस खुलासे के बाद नागपुर महानगरपालिका (NMC) के ऊपर बांध सुरक्षा कानून, 2021 के उल्लंघन का आरोप लग गया है।
यह शपथपत्र उस जनहित याचिका (PIL) की सुनवाई के दौरान दाखिल किया गया, जिसे नागपुर के 22 सितंबर 2023 की बाढ़ से प्रभावित नागरिकों ने दायर किया था। इस बाढ़ ने शहर में जान-माल का भारी नुकसान किया था।
स्पिल चैनल पर बनी प्रतिमा
कार्यकारी अभियंता प्रांजली टोंगसे द्वारा दायर शपथपत्र में स्पष्ट कहा गया है कि प्रतिमा बांध की टेल या स्पिल चैनल में बनी है — यानी यह बांध की सक्रिय और कार्यरत संरचना का हिस्सा है। यह बयान उन दावों के विपरीत है जो कहते हैं कि प्रतिमा बांध से अलग स्थान पर है।
शपथपत्र में कहा गया है कि NMC ही इस 150 साल पुराने बांध की स्वामित्वधारी है और रखरखाव, सुरक्षा और कानून के पालन की पूरी जिम्मेदारी उसी की है।
अनुमति के बिना निर्माण, कानून का उल्लंघन
शपथपत्र के अनुसार, महानगरपालिका ने जल संसाधन विभाग से पूर्व अनुमति लिए बिना निर्माण कार्य किया, जो कि बांध सुरक्षा अधिनियम की धारा 46 और धारा 26(6) का स्पष्ट उल्लंघन है।
इसके साथ ही वर्ष 2013 और 2018 के सरकारी आदेशों का हवाला भी दिया गया है, जिनमें बांध के अपस्ट्रीम और डाउनस्ट्रीम क्षेत्रों में निर्माण पर रोक है — जिसे NMC ने नजरअंदाज कर दिया।
CWPRS रिपोर्ट पर उठे सवाल
हालांकि CWPRS, पुणे द्वारा अंबाझरी बाढ़ रूटिंग पर एक अध्ययन किया गया था, सिंचाई विभाग ने इससे खुद को अलग कर लिया और कहा कि वे तकनीकी विशेषज्ञ रिपोर्ट की व्याख्या के लिए अधिकृत नहीं हैं।
दूसरी ओर, याचिकाकर्ताओं ने CWPRS की रिपोर्ट को “ढोंग” बताया है और आरोप लगाया है कि यह रिपोर्ट गलत आंकड़ों पर आधारित है, जो NMC और विदर्भ सिंचाई विकास निगम (VIDC) ने दिए थे।
प्रतिमा से बाधित हुआ जल प्रवाह
याचिकाकर्ताओं ने पहले किए गए अध्ययनों का हवाला दिया, जिनमें यह बताया गया था कि प्रतिमा के कारण जल निकासी मार्ग सिर्फ 5.07 मीटर चौड़े दो संकरे रास्तों में बंट गया, जिससे बाढ़ के समय जल प्रवाह में बाधा उत्पन्न हुई।
उन्होंने यह भी बताया कि प्रतिमा “नो डेवलपमेंट ज़ोन” और “प्रतिबंधित क्षेत्र” में स्थित है। शहरी विकास विभाग के प्रधान सचिव ने भी पहले यह बात स्वीकार की थी।
2018 में VIDC ने दी थी चेतावनी
याचिकाकर्ताओं ने 12 अप्रैल 2018 को हुई बैठक का हवाला दिया जिसमें VIDC के कार्यकारी निदेशक की अध्यक्षता में यह कहा गया था कि प्रतिमा जल निकासी में बाधा बन रही है। VIDC ने ₹10 करोड़ के सुधार कार्य का प्रस्ताव भी दिया था, जिसमें से ₹1 करोड़ NMC ने जमा किया, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई।
पर्यावरण नियमों का भी उल्लंघन
याचिकाकर्ताओं ने यह भी कहा कि अंबाझरी झील एक संरक्षित वेटलैंड है और इसका संरक्षण वेटलैंड (संरक्षण और प्रबंधन) नियम, 2010 के अंतर्गत आता है। प्रतिमा का निर्माण इन नियमों और बिना न्यायालय की अनुमति के किया गया था।
बाढ़ में जान-माल का भारी नुकसान
प्रतिमा को 2023 की बाढ़ के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए याचिकाकर्ताओं ने बताया:
- 4 लोगों की मौत
- 26,612 परिवार प्रभावित
- ₹1,000 करोड़ से अधिक का निजी नुकसान
- ₹234 करोड़ की सार्वजनिक संपत्ति क्षतिग्रस्त
- सिर्फ ₹16 लाख मुआवज़ा पीड़ित परिवारों को दिया गया
हाईकोर्ट ने मामले की गंभीरता को देखते हुए NMC को एक सप्ताह के भीतर शपथपत्र दाखिल करने का निर्देश दिया है। याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता तुषार मंडलेकर पेश हुए।
राजनीतिक नेतृत्व पर कार्रवाई क्यों नहीं?
अब यह गंभीर सवाल उठता है कि उस समय के महापौर, स्थायी समिति के अध्यक्ष और अन्य पदाधिकारियों पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं की गई, जिनके राजनीतिक दबाव में अधिकारियों ने यह परियोजना मंज़ूर की और VIDC व अन्य विभागों द्वारा बार-बार दर्ज की गई आपत्तियों को नजरअंदाज किया। क्या यह केवल अधिकारियों की लापरवाही थी, या फिर सत्ता में बैठे जनप्रतिनिधियों ने जानबूझकर जनहित को ताक पर रखा? यदि जवाबदेही सुनिश्चित करनी है तो केवल अधिकारियों नहीं, बल्कि राजनीतिक नेतृत्व की भूमिका की भी गहन जांच और कार्रवाई होनी चाहिए।