‘ऑपरेशन सिंदूर’—एक सैन्य कार्रवाई जिसने देशभक्ति की भावना को जगाया—अब एक सांस्कृतिक और राजनीतिक विवाद का केंद्र बन चुका है। रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) हर महिला को सिंदूर बाँटने की योजना बना रही थी। हालांकि भाजपा ने इसे फर्जी खबर बताया, लेकिन इस मुद्दे ने आरएसएस और भाजपा के बीच गहराते मतभेदों और आम जनता, खासकर महिलाओं की नाराजगी को उजागर कर दिया।
आरएसएस और मोहन भागवत की चुप्पी क्यों?
ऑपरेशन सिंदूर पर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने सैन्य कार्रवाई का समर्थन करते हुए कहा कि भारत शांति चाहता है, लेकिन जरूरत पड़ने पर जवाब देने में सक्षम है। हालांकि, जब सिंदूर वितरण योजना की खबरें सामने आईं, तो ना तो आरएसएस और ना ही मोहन भागवत की ओर से कोई स्पष्ट बयान आया। यह चुप्पी कई सवाल खड़े करती है—क्या यह असहमति का संकेत है, या फिर भाजपा के राजनीतिक फैसलों से दूरी बनाए रखने की रणनीति?
ऑपरेशन सिंदूर और संघर्षविराम पर मतभेद
ऑपरेशन सिंदूर के बाद जिस तरह से संघर्षविराम की घोषणा हुई, उससे भी भाजपा और आरएसएस के बीच मतभेद उभरते दिखे। आरएसएस का रुख अधिक सख्त कार्रवाई के पक्ष में बताया जा रहा था, जबकि भाजपा ने चुनावी और कूटनीतिक संतुलन के तहत सीमित जवाब को प्राथमिकता दी। यह रणनीतिक मतभेद अब सार्वजनिक बहस का हिस्सा बनते जा रहे हैं।
सिंदूर वितरण योजना—फर्जी खबर या नाकाम प्रयोग?
भाजपा पर आरोप लगे कि वह महिलाओं को ‘सिंदूर’ बाँटने की योजना बना रही है, जिससे उसकी राष्ट्रवादी छवि को एक सांस्कृतिक प्रतीक के ज़रिये और मजबूती दी जा सके। विपक्ष ने इसे महिला सम्मान का राजनीतिकरण बताया, जबकि भाजपा ने इस खबर को पूरी तरह खारिज कर दिया और कहा कि यह विपक्ष द्वारा फैलाया गया झूठ है। पीआईबी की फैक्ट चेक रिपोर्ट ने भी ऐसी किसी योजना से इनकार किया।
महिलाओं और सोशल मीडिया की तीखी प्रतिक्रिया
जैसे ही ये खबरें सामने आईं, सोशल मीडिया पर महिलाओं ने तीव्र विरोध जताया। कई महिलाओं ने इसे अपमानजनक और पितृसत्तात्मक कदम बताया, जिससे उनकी भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया जा रहा था। बिहार और बंगाल जैसे राज्यों में, जहां सिंदूर सांस्कृतिक रूप से अत्यधिक महत्व रखता है, विरोध और भी ज़्यादा मुखर रहा।
क्या बिहार और बंगाल चुनाव असली वजह हैं?
बिहार और पश्चिम बंगाल में महिलाओं की संख्या और उनकी चुनावी भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह विवाद ऐसे समय पर सामने आया है जब दोनों राज्यों में चुनाव की तैयारी जोरों पर है। विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा को महिला मतदाताओं की नाराजगी का अहसास हुआ और यही वजह है कि उसने तत्काल दूरी बना ली।
ममता बनर्जी की मोदी को चुनौती
इस विवाद को और हवा दी पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने। उन्होंने न केवल सिंदूर वितरण की आलोचना की, बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को खुले बहस की चुनौती दे डाली। उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा ‘राजनीतिक होली’ खेल रही है और महिला सम्मान को हथियार बना रही है।
निष्कर्ष
ऑपरेशन सिंदूर की सफलता के बाद भाजपा एक भावनात्मक लहर बनाना चाहती थी, लेकिन ‘सिंदूर विवाद’ ने उसकी रणनीति को उल्टा कर दिया। आरएसएस की चुप्पी और जनता की प्रतिक्रिया से साफ है कि सांस्कृतिक प्रतीकों का राजनीतिक उपयोग हर बार सफल नहीं होता। आने वाले चुनावों में यह विवाद भाजपा के लिए एक अहम सबक बन सकता है।