Published On : Mon, May 30th, 2022
By Nagpur Today Nagpur News

कहीं खण्ड खण्ड न हो जाये भारत

Advertisement

– अनावश्यक हिंदू- मुस्लिम विवादों से बचना होगा

इन दिनों भारत में हिन्दू – मुस्लिम विवादों को हवा दी जा रही है जिनसे शांति और सौहार्दता संकट में प्रतीत होती है। हमें बताया जाता है की त्रेतायुग के महाराज प्रियव्रत का अपना कोई पुत्र नहीं था तो उन्होंने अपनी पुत्री के पुत्र अग्नीन्ध्र को गोद ले लिया था जिसका लड़का नाभि था। नाभि के पुत्र ऋषभ थे और ऋषभ के पुत्र भरत थे।इन्हीं भरत के नाम पर इस देश का नाम ‘भारतवर्ष’ पड़ा। कुछ इतिहासकार मानते हैं कि श्रीराम के कुल में पूर्व में जो भरत हुए उनके नाम पर और कुछ अन्य के अनुसार पुरुवंश के राजा दुष्यंत और शकुन्तला के पुत्र भरत के नाम पर हमारे प्रिय देश का नाम ‘भारत’ पड़ा। साथ ही यह भी कहा जाता है अखण्ड भारत का प्राचीन स्वरूप बहुत विस्तृत था जिसमें वर्तमान के देश भारत, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, तिब्बत, भूटान, म्यांमार, बांग्लादेश, श्रीलंका, मलेशिया, फिलिपिंस, थाइलैंड, वियतनाम, कंबोडिया, इंडोनेशिय, लाओस, मालदीव, सिंगापुर, ब्रुनेई, नेपाल आदि शामिल थे।

Gold Rate
23 July 2025
Gold 24 KT 1,00,900 /-
Gold 22 KT 93,800 /-
Silver/Kg 1,16,700/-
Platinum 44,000/-
Recommended rate for Nagpur sarafa Making charges minimum 13% and above

भारत हमेशा से ही हज़ारों राजा-रजवाड़ो में बंटा हुआ था और ये राजा अपने निजी स्वार्थ और अपने रजवाड़ो की सीमाएं बढ़ाने के लिये आपस में लड़ते रहे। इस देश के इतिहास में ऐसे बहुत कम अवसर आये जब किसी शक्तिशाली राजा ने अखण्ड भारत कहे जाने वाले पूरे भूभाग के बड़े हिस्से पर अपना अधिकार स्थापित किया। जिन्होंने किया उनमें गुप्त व मौर्य राजवंश का नाम लिया जाता है। इनके बाद का इतिहास अस्पष्ट है।

भारत में विदेशी हमलावरों के आने का सिलसिला पुराना रहा है। पूरी दुनिया को फतह करने निकला, ‘महान’ कहे जाने वाला सिकंदर भी भारत आया था। उसको पुरुवंशी राजा पोरस ने कड़ी चुनौती झेलनी पड़ी थी। इतिहास अनुसार देश पर मुस्लिम राजा के रूप में पहला सफल आक्रमण करनेवाला व्यक्ति मोहम्मद बिन कासिम था। उसके सहित सभी मुस्लिम राजाओं पर भारत को खण्ड खण्ड करने का आरोप लगाया जाता है। मान लिया कि मुसलमान हमारे देश में इतर भ-ूप्रदेश से आये और भारत पर आक्रमण करके अपनी सत्ता स्थापित की। उस दौर में पूरी दुनिया में इसी तरह की शासन प्रणाली थी। सारी दुनिया तलवार की नोंक पर चलती थी इससे कोई इंकार नहीं कर सकता। तत्कालीन छोटे- बड़े हिन्दू राजाओं की सेना अगर इन आक्रमणकारियों का मुकाबला करने के लिये एक हो जाती तो उन्हें अवश्य ही पीठ दिखाकर भागना पड़ता। लेकिन इतिहास साक्षी है कि कई राजाओं ने इन्हीं आक्रमणकारियों से हाथ मिलाकर इनका साथ दिया।

हिंदू समाज का सबसे ज्यादा गुस्सा मुगल साम्राज्य की भारत में नींव रखने वाले बाबर और उसी के वंशज छठे बादशाह औरंगज़ेब पर दिखाई पड़ता है। औरंगजेब ने राजसत्ता के लिये अपने सगे भाई दारा शिकोह को फाँसी दे दी और अपने पिता शाहजहाँ को आजीवन बंदी बना लिया। उसे ही देश में मथुरा – काशी सहित इतर हज़ारों मंदिर तोड़ने का जिम्मेदार माना जाता है। बाबर ने अपने काल में अयोध्या का श्रीराम मंदिर तुड़वाया। विश्वप्रसिद्ध इतिहासकार रिचर्ड ईटन के अनुसार औरंगज़ेब ने जितने मंदिर तुड़वाए, उससे कहीं ज़्यादा बनवाए थे। मुग़लकाल में मंदिरों को ढहाना दुर्लभ घटना हुआ करती थी और जब भी ऐसा हुआ तो उसके कारण राजनैतिक रहे। मंदिरों को तोड़े जाने की बात इतनी ज़्यादा प्रचारित की गई है कि वह अविश्वसनीय सी लगती है । एक और घटना के अनुसार औरंगजेब ने सिख धर्म गुरु गुरु तेग बहादुर को बंदी बनाया और उन्हें कठोर यातनाएं दीं थीं । उन्हें इस्लाम धर्म अपनाने के लिए कहा और जब गुरु तेग बहादुर ने इससे इनकार कर दिया तो औरंगजेब ने उनका सिर कटवा दिया।

खैर, समय बदला देश मे मुगल शासकों का दौर भी खत्म हुआ। फिर अंग्रेज व्यापारी बन कर आये और पूरे देश पर अपनी सत्ता स्थापित कर ली। ऐसा कहा जाता था कि ब्रिटिश साम्राज्य में सूरज कभी नही डूबता। भारत में अंग्रेजों के खिलाफ सन् 1857 में पहला बड़ा विद्रोह हुआ जिसका नेतृत्व आखरी मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर ने किया और इसमें झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, नाना साहब पेशवा, बेगम हजरतमहल, कुँवर सिंह, मौलवी अहमदुल्ला आदि ने भाग लिया। विद्रोह असफल हुआ। पर अंग्रेजी साम्राज्य का विरोध बढ़ता चला गया। सन् 1885 में कांग्रेस का गठन हुआ। अंग्रेज़ी शासन के खिलाफ धीरे धीरे दोबारा आंदोलन शुरू हुआ। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में गाँधी युग की शुरुआत 1920 के असहयोग आंदोलन से हुई। भारत में असहयोग आंदोलन का मुख्य लक्ष्य ब्रिटिश सरकार के खिलाफ़ अहिंसक विरोध जताना एवं सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत करना था। इस आंदोलन का नेतृत्व गाँधीजी एवं भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने किया। देखते – देखते सारा देश गांधीजी के पीछे चल पड़ा। हिंदू, मुस्लिम, सिख सभी धर्म, जाति, पंथ के लोगो ने अपनी पूरी ताकत आंदोलन में झोंक दी।

जब देश आजाद होने के करीब था तभी मुस्लिम लीग के नेता मोहम्मद अली जिन्ना ने मुसलमानों के लिये अलग राष्ट्र पाकिस्तान की मांग रख दी। ब्रिटिश सरकार की तो जैसे मन की मुराद पूरी हो गई। कांग्रेस ने भी भारी मन से इस विभाजन को स्वीकार कर लिया। विभाजन के समय हुए दंगो में लाखों हिन्दू , मुस्लिम , सिख मारे गये। लोगो के परिवार आपस में बिछड़ गये, जबरदस्त कत्लेआम हुआ, लाखों औरतों की अस्मत लूटी गई। हिंदू और मुसलमान लोगों के दिलों में गहरी खाई घर कर गई।

आखिरकार 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ। पंडित जवाहरलाल नेहरू देश के प्रथम प्रधानमंत्री मंत्री बने। डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर के नेतृत्व में एक समिति को देश का संविधान लिखने की जवाबदारी दी गई। ३० जनवरी १९४८ को हिंदूवादी संगठन से जुड़े नाथूराम गोडसे ने, जो देश के बंटवारे के लिए गांधीजी को जवाबदार मानता था, उसने गांधीजी की गोली मारकर हत्या कर दी।

26 जनवरी 1950 की सुबह भारत गणतंत्र बना और संविधान लागू हुआ। डॉ. राजेंद्र प्रसाद देश के प्रथम राष्ट्रपति बने। देश में आजादी के दिन से रहने वाले सभी यहां के नागरिक बन गये। लगभग 50 वर्षो तक देश पर कांग्रेस पार्टी या कहें तो पंडित नेहरू और उनके परिवार का राज राह। हिंदूवादी विचारों के प्रचारक कांग्रेस पार्टी पर अपने राजनीतिक फायदे के लिये मुसलमानों की तरफदारी का और हिंदुओं को अपमानित करने का आरोप लगाते रहे। आजादी के बाद भी सैकड़ों वर्ष पुराने हजारों मंदिर – मस्जिद विवाद देश की विभिन्न अदालतों में चलते रहे। इनमें अयोध्या, मथुरा, काशी प्रमुख थे । फिर नब्बे के दशक में हिन्दू संगठनों ने अयोध्या में भव्य राम मंदिर बनाने का संकल्प लेते हुए तीव्र आंदोलन शुरू कर दिया।

भारतीय जनता पार्टी के नेता लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में देशव्यापी रथ यात्रा सोमनाथ से अयोध्या के लिए शुरू कर दी गई। इसे बिहार में रोक कर मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने भाजपा नेता लालकृष्णा अडवाणी को गिरफ्तार कर लिया। परिणाम स्वरूप भाजपा ने अपना समर्थन वापस लेकर केंद्र की वी पी सिंह सरकार को गिरा दिया। देश में राजनीतिक अनिश्चयता का माहौल बन गया। इस बीच जनता दाल से अलग हुए समाजवादी नेता चंद्रशेखर ने कांग्रेस के समर्थन से सरकार बना ली जिसे क्षुद्र कारणों से कांग्रेस ने चार महीने में ही गिरा दिया। चंद्रशेखर जी ने लोकसभा भंग कर के नये चुनाव की घोषणा कर दी। दुर्भाग्य से इसी बीच पूर्व प्रधानमंत्री तथा कांग्रेस अध्यक्ष राजीव गाँधी की लिट्टे समर्थकों ने हत्या कर दी। नये चुनाव में कांग्रेस फिर सत्ता में आ गई। श्री नरसिंह राव प्रधानमंत्री बने। अयोध्या बाबरी विवाद बढ़ता देख उन्होंने “उपासना स्थल क़ानून 1991” बना दिया जो किसी भी प्रकार के धार्मिक स्थलों के परिवर्तन को निषिद्ध करता है और ऐसे धार्मिक स्थल जैसे वो 15 अगस्त 1947 को थे उनको उसी रूप में संरक्षित करता है। लेकिन इससे अयोध्या विवाद को अलग रखा गया।

1992 में हिंदूवादी नेताओं ने अयोध्या में कार सेवा का आवाहन किया। केंद्र सरकार और कोर्ट हरकत में आये । कारसेवा आयोजकों द्वारा सर्वोच्च न्यायालय को दिये हलफनामे के बावजूद बाबरी मस्जिद का ढांचा गिरा दिया। देश दंगों की आग से जल उठा। हजारों हिंदू मुस्लिम दोनों मारे गये। उत्तर प्रदेश राज्य सरकार बर्खास्त कर दी गई। मामला फिर से अदालतों में फंस कर रह गया । लोगों में नफरत बढ़ती गई । एक दूसरे से बदला लेने की भावना पनपती रही । पर नेताओं के मन की मुराद तो पूरी हो रही थी। यही तो वे चाहते थे। ऐसा नहीं है कि ये आजादी के बाद का पहला और आखरी दंगा था । इसके पहले और बाद में भी दंगो से देश लहू लुहान होते रहा था। फिर 2019 में अयोध्या विवाद पर सर्वोच्च न्यायालय ने अपना फैसला सुनाया जिसके अनुसार विवादित स्थल को राम जन्मभूमि माना गया और मस्जिद के लिये अयोध्या में 5 एकड़ ज़मीन देने का आदेश सरकार को दिया। कुछ मुस्लिम नेताओं की छुटपुट बयानबाजी को दरकिनार करते हुए मुस्लिम पक्ष सहित पूरे देश ने सर झुका कर फैसला मान लिया। लगा कि अब सारे विवाद खत्म हुए और अब दोनों पक्ष एक बार फिर मिलजुल कर रहेंगे। देश की तरक्की में योगदान देंगे।

पर लगता है कि नियति को ये मंजूर नहीं है। 1991 के उपासना स्थल कानून के बावजूद अब एक बार फिर पुराने विवादों को कुरेदा जा रहा है । काशी विश्वनाथ मंदिर से सटी ज्ञानव्यापी मस्जिद में अदालती आदेश से सर्वे शुरू हो गया है। मथुरा विवाद में भी लोग फिर अदालत पहुंच गये हैं । कुछ सज्जन तो ताजमहल को तेजोयमहल बताते हुए उच्च न्यायालय पहुंच गये और ताज महल के तहखाने को खुलवाने के लिये अदालत में जनहित याचिका दाखिल कर दी। लेकिन अदालत ने इसे खारिज कर दिया और उन्हें जमकर फटकार लगाई। मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि अब एक के बाद एक पुराने विवादों को दोबारा खोला जाएगा।इसका कोई अंत नही है। देश के कर्णधारों की भी मजबूरी है कि उन्हें अपनी विफलताएं जो छुपाना है। जनता से शिक्षा, स्वास्थ्य, मंहगाई, बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर किये गये वादों की पूर्ति में विफलताओं से घिरे नेता ऐसे विवादों को हवा देते रहेंगे और उन्हें उलझाये रखेंगे ताकि वे सत्तामें बने रहें।

इस वर्ष हम आजादी की ७५ वीं वर्षगाँठ मना रहे है हमें अब ऐसे विवादों को पीछे छोड़ कर आगे निकलना होगा। हम उस देश मे पैदा हुए हैं जहाँ ईश्वर के कण कण में व्याप्त होने की अवधारणा को मान्यता है। उसे हम मंदिरों, प्रतिमाओ, शिलाओं तक सीमित नहीं कर सकते । हमनें उसे निराकार, अनंत माना है। वो सबका है, सब जगह और सब में है। यही गीता सहित सभी ग्रंथों में कहा गया है । देश में धार्मिक कट्टरता वह द्वेष फ़ैलानेवालो की कमी नहीं है। यह भी तथ्य है कि इसी देश में अनेक मुस्लिम कृष्ण भक्तों, कवि गीतकारों ने अपने रचित भजनों से कृष्ण की स्तुति करके दोनों धर्मों के बीच पुल बनाने की कोशिशें की हैं । इनमें अमीर ख़ुसरो, रसखान, नज़ीर अकबराबादी और वाजिद अली शाह जैसे कई मुस्लिम शामिल हैं । दरअसल इन्हीं ने हमारी गंगा जमुनी तहज़ीब (संस्कृति) की नींव रखी जिसने हज़ारो साल के हमारे आपसी भाईचारे के तानेबाने को बुना, मजबूत बनाया ।

अगर अब भी हम धर्म, जाति, पंथ के भेद-विवादों में उलझे रहे तो हमारी इस महान भारत भूमि को दोबारा खण्ड खण्ड होने में समय नहीं लगेगा।

– संजय बी जे अग्रवाल, नागपुर

Advertisement
Advertisement