Published On : Sun, Apr 13th, 2014

तुमसर का ऐतिहासिक किला नष्ट होने के कगार पर

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Tumsar-Fort-1भंडारा.

भंडारा जिले के तुमसर तालुका से 10 कि.मी. दू`र आंबागड में सातपुडा पर्वत माला के चोटी पर सन 1700 में गोंड राजा बख्त बुलंद शाह ने इसका निर्माण कराया था. यह  ऐतिहासिक किला अब बदहाल है और दम तोड़ रहा है. सत्रहवीं सदी में यह क्षेत्र बुलंद शाह के अधीन था. सांस्कृतिक, ऐतिहासिक धरोहरों की रक्षा के लिए पुरातत्व विभाग एवं पर्यटन विभाग को इसकी रक्षा करने के लिए पहल करने की जरूरत है. यहाँ  पहुंचने के लिए पर्यटकों को किसी भी प्रकार की सुविधा नही है. बताया जाता है कि 2004  में महाराष्ट्र शासन द्वारा किले को संरक्षित वास्तु घोषित करके पर्यटन विकास को पर्याप्त धन उपलब्ध कराया गया है.

12  से 16वीं सदी तक राजपूत सत्ता समाप्त होने के बाद भंडारा जिले के भू क्षेत्र पर गोंड राजा की सत्ता स्थापित हुई थी. सत्रहवीं सदी में यहां का कुछ भाग छिंदवाडा  जिले के देवगड के अरी बुलंद शाह के अधीन था. बख्त बुलंद के बाद चांद सुलतान, रघूजी भोसले, अप्पासाहेब भोसले व बाद में ब्रिटिशो के अधीन में यह क्षेत्र आया. गोंड राजा के कार्यकाल में यहां उनकी लष्करी थी. बख्त बुलंद शाह के आदेशानुसार राजखान पठाण ने जंगल में शत्रु से बचाव के लिए इस किले की बहुत ही कलात्मक व सुंदर रचना की थी.

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चांद सुलतान की पत्नी रानकुवर का वास्तव्य कुछ काल इस किल्ले में था. सन 1706 में वे राजधानी देवगड से नागपुर में ले गए. गोंड राजा के बाद यह किला भोसले राज, नागपुर के अधीन आया. उनके कार्यकाल में इस किले का इस्तेमाल जेल जैसा होता था. कि पर अनेक ऐतिहासिक दर्शनीय वास्तू आज भी नजर आती है. किले के पास हरेभरे नैसर्गिक सौंदर्य मन मोह लेते हैं. यहां आज भी आम्रवृक्ष चारों ओर भरे पड़े हैं. किले पर जाने के लिए पर्यटन विभाग ने करीब 502 सीढ़ियों का निर्माण किया है. यहाँ एक हाथीखाना भी है. किले का परिसर 10 एकड़  से भी अधिक है. किले में 16 बाय 12 फुट की एक टंकी , 100  बाय 100  फुट की दूसरी टंकी है. बताया जाता है कि यहाँ से नागपुर जाने के लिए भूमिगत सुरंग हुआ कारता था.  यहाँ रसोईखाना, सभामंडप के लिए भी अनेक कमरे थे. रानी का स्नानागार और पानी की टंकी आज भी है. किले का गोल बुर्ज तथा मसाला पीसाई की चक्की आज भी नजर आती है. पहाड़ पर मुख्य  किला है.

 

इस ऐतिहासिक वास्तू व पर्यटनस्थल तक जाने के लिए सार्वजनिक वाहन की यहां कोई व्यवस्था भी नहीं है. अभी तक यहां तक पहुंचने का सुलभ मार्ग भी नहान बन पाया है. निजी वाहन से भी यहां पहुँच पाना कठिन है. पर्यटन स्थल के विकास के लिए महाराष्ट्र शासनने करोड़ों  रुपए मंजूर किए गए, लेकिन इस किले के विकास की और गम्भीरता से अब तक किसी का ध्यान नहीं जा रहा. इस ऐतिहासिक धरोहर का विनाश तेजी से हो रहा है. किले की पुरानी चीजे व ऐतिहासिक चीजे गायब हो चुकी हैं. खजाने की खोज में यहां आये दिन चोर इसे नष्ट करते जे रहे हैं.

 

पर्यटन विभाग की अनदेखी 

महाराष्ट्र पर्यटन विभाग के अधिकारी यहां  आते तो रहते हैं, लेकिन इसे बचने का कोई ठोस उपाय नहीं करते. जनप्रतिनिधियों का भी इस और ध्यान नहीं है. इसके विकास के लिए सरकार से मिला धन कहाँ खर्च हुआ, यह भी पूछने वेले कोई नहीं है. यह बहुमूल्य धरोहर यूं ही नष्ट होता चला जा रहा है.

 

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