खुलेआम चल रहा है गोरखधंधा
कामठी
शहरों की तरह ही अब गांवों में भी अंग्रेजी स्कूलों की फसल बड़े पैमाने पर उगने लगी है. ऐसी स्कूलों में आम आदमी की जेब खुलेआम काटी जा रही है. स्कूल संस्थापक प्रवेश के नाम पर मनमानी फ़ीस वसूल रहे हैं. इन बिना अनुदानित शालाओं में शिक्षा का गोरखधंधा तेजी से फल-फूल रहा है.
उच्च शिक्षा के लिए अंग्रेजी के अलावा और कोई विकल्प नहीं होने के कारण इन्ही स्कूलों में अपने बच्चों को प्रवेश दिलाना अभिभावकों की मजबूरी बन गया है. अगर अंग्रेजी स्कूलों जैसी सुविधा और व्यवस्था जिला परिषद के स्कूलों में भी की जाती तो अभिभावकों के लिए बोझ बनता शिक्षा का खर्च बच सकता था.
किसान और मध्यमवर्गीय लोगों का रुझान भी अंग्रेजी स्कूलों की ओर बढ़ रहा है. इसके चलते जिला परिषद के शिक्षकों पर विद्यार्थियों को खोजने की नौबत आ गई है. उधर, अंग्रेजी स्कूलों की लूट का आलम यह है कि ग्रामीण भागों के स्कूलों में दी जानेवाली फ़ीस की रसीद में किसी प्रकार का कोई विवरण नहीं दिया जाता. इन स्कूलों में सरकार के आरक्षण के नियमों का भी पालन नहीं किया जाता. शिक्षा विभाग को इस तरफ ध्यान देने की जरूरत है.
