वनवासी कल्याण आश्रम ने स्वर्गीय डॉ. कार्तिक उराव की 39वी पुण्यतिथि मनाई
नागपुर: वनवासी कल्याण आश्रम के विदर्भ कार्यालय में स्वर्गीय डॉ. कार्तिक उराव की 39वी पुण्यतिथि मनाई गई. इस अवसर पर आदिवासी नेता श्याम धुर्वे ने स्वर्गीय कार्तिक उराव के जीवन बारे में अपने संबोधन में बताया की स्वर्गीय कार्तिक उराव केवल जनजातियों को ही नहीं तो सम्पूर्ण भारतवासियो को हमेशा याद रहेंगे. इंजीनियरिंग और टेक्नोलॉजी इस विषय में पीएचडी लंदन से प्राप्त करने के बाद वे डिप्टी चीफ इंजीनियर तथा हिंकले नूक्लिअर पावर प्लांट के निर्माता रहे. भारत सरकार के केंद्रीय मंत्री भी रहे. जनजातियों के धर्मांतरण से वे बहोत दुखी थे. ईसाई या मुसलमान बनने से जनजातियों के रीतिरिवाज एवं परम्पराएं नष्ट होती है. ऐसा वे मानते थे. केंद्रीय मंत्री बनने के बाद इस संबंध में कानून बने यह उनकी इच्छा थी.
अनुसुचित जाति को एस.सी, कापे अधिनियम 1950 धारा 341,कंडिका 2 के अनुसार एक प्रकार का सैवाधानिक संरक्षण प्राप्त है. जिसके अनुसार अनुसूचित जनजातियों का कोई भी सदस्य यदि ईसाई या मुसलमान बनता है. तो उसका आरक्षण का लाभ नहीं मिलता. इस प्रकार का सैंवधानिक संरक्षण जनजातियों को भी मिले. इस दृष्टि से केंद्रीय मंत्री रहते हुए उन्होंने 348 सांसदों के हस्ताक्षर युक्त एक ज्ञापन, तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय. इंदिरा गांधी को दिया था. किन्तु ईसाईयों के दबाव में आकर 348 सांसदों के ज्ञापन को अस्वीकार किया गया. इस सदन में डॉ. कार्तिक उराव ने आनेवाली पीड़ा को व्यक्त करते हुए कहा था कि बीस वर्ष की काली राम नामक पुस्तक प्रकाशित की थी. उनकी यह पुस्तिका पूरी जनजाति समाज की व्यथा को व्यक्त करती है.इतिहास के पन्ने बताएँगे की अंग्रेजी राज्य के 150 वर्षो में ईसाई मिशिनरियों द्वारा इतना धर्मपरिवर्तन नहीं हुआ, जितना आजादी मिलने के बाद हुआ.
स्वर्गीय कार्तिक उराव प्रथम श्रेणी के राष्ट्रवादी एवं दार्शनिक थे. उन्होंने जनजातियों के कल्याण के लिए अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद् नामक संस्था का गठन किया. जो आज भी कार्यरत है. 8 दिसंबर 1981 को इस महान कर्मयोगी ने अपना देह त्याग दिया.
इस श्रद्दांजलि कार्यक्रम का संचालन सुशांत धुर्वे ने किया एवं इस समापन संघटना के विदर्भ सचिव रवि संगीतराव ने किया. आभार प्रदर्शन संतोष धुर्वा ने किया. इस कार्यक्रम को सफल बनाने में भास्करराव रोकड़े, शिप्रा पितले, कीर्ति मड़ावी, रंजीत ढोक एवं छात्रावास ने परिश्रम किया.