Published On : Mon, Jul 8th, 2019

सरकारी नीतियों से इंजीनियरिंग, डिप्लोमा कॉलेजों का भविष्य संकट में

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– सरकारी अनुदान वक़्त पर नहीं दिया जा रह है तो बैंकों ने शिक्षा संस्थानों को ऋण देने में कर रही आनाकानी

नागपुर: पिछले ५ वर्षों से नागपुर जिला सहित सम्पूर्ण राज्य के चुनिंदा इंजीनियरिंग और डिप्लोमा कॉलेजों को छोड़ दिया जाए तो अधिकांश की हालात काफी दयनीय हो गई है. राज्य सरकार तय समय पर ओबीसी, एसटी, एससी अनुदान नहीं दे रही है तो दूसरी ओर जब शैक्षणिक संस्थान व्यवस्थित कॉलेज संचलन के लिए किसी भी बैंक से ऋण हेतु आवेदन करता है तो उन्हें साल-साल भर बाद भी ऋण नहीं दिया जाता. जिसका सीधा असर इन कॉलेज में अध्ययनरत विद्यार्थियों पर पड़ रहा है.

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डिग्री लेने के बाद भी इन्हें उचित नौकरियां नहीं मिल रही है. सूत्र बतलाते है कि राज्य सरकार भाजपा की है और शत-प्रतिशत शैक्षणिक संस्थान कोंग्रेसियों की. इस भ्रम का अंकेक्षण जिलावार करने के बजाय सिरे से सभी को एक ही तराजू में तौला जा रहा. इस क्रम में नागपुर जिले सहित सम्पूर्ण राज्य के लगभग २ दर्जन शैक्षणिक संस्थानों को छोड़ दिया जाए तो शेष आर्थिक अड़चनों का सामना कर रहे हैं.

आर्थिक अड़चन में होने से नागपुर के ४ बड़े समूह को छोड़ दिया जाए तो शेष संस्थान कुछ माह बाद शिक्षकों और कर्मियों को वेतन दे रहे हैं. इस आर्थिक अड़चन के कारण वे गुणवत्तापूर्ण विद्यार्थी तैयार करने के लिए मेहनत नहीं कर रहे हैं.

२०००० सीट और मात्र ९००० पंजीयन
नागपुर विश्वविद्यालय अंतर्गत इंजीनियरिंग के विभिन्न संकाय के लगभग २०००० सीटें हैं. लेकिन इस शैक्षणिक वर्ष में अबतक मात्र १३००० ही पंजीयन हुए हैं. जिसमे से लगभग ९००० पंजीयन इंजीनियरिंग के बताए जा रहे हैं. शेष आर्किटेक्चर और फार्मेसी के लिए हुए है इनमें से नागपुर के डीम्ड कॉलेज २५०० के आसपास विद्यार्थी अपनी ओर आकर्षित कर लेते हैं. लगभग १ से २ हज़ार के आसपास विद्यार्थी पुणे या अन्य राज्य के कॉलेज में दाखिला ले लेते हैं. शेष कॉलेज विभिन्न अभावों के कारण शेष पंजीकृत आवेदकों को हथियाने की दौड भाग करते देखे जाते हैं.

ऋण के लिए बैंक प्रबंधनों के नए नए नखरे
अब बैंक शैक्षणिक संस्थानों को लोन देने के लिए उनके संस्थान की इमारतों के अलावा ६०% पर्सनल प्रॉपर्टी भी गिरवी रखने का दबाव बना रही है. इतने कड़े नियमों के कारण शैक्षणिक संस्थानों को ऋण के लिए साल-साल भर मशक्कत करनी पड़ रही है. इसके बावजूद मांग अनुरूप ऋण नहीं मिलने से पिछले ५ वर्षों में कॉलेज ‘इंफ़्रा’ जस का तस बना हुआ है. कई जगहों पर कमजोर होने की जानकारी मिली है.

डिप्लोमा कॉलेजों का हाल और बुरा
नागपुर के नामचीन राजनेता मेघे, मूलक, अनीस ने अपने अपने पॉलिटेक्निक कॉलेज में से कुछ बंद कर दिए हैं. शेष में से इक्के-दुक्के को छोड़ दें तो बाकि को विद्यार्थी नहीं मिल रहे हैं. यहां तक कि सरकारी पॉलिटेक्निक कॉलेज के हाल भी बुरे हैं. वे तो इस साल से इ-रिक्शा पर बैनर-पोंगे लगा कर गली गली प्रचार कर रहे हैं. अन्य पॉलिटेक्निक कॉलेज में २० से ३० % विद्यार्थियों पर सालाना करोड़ों में खर्च आएंगे. जिन संस्थानों के पास आय के अन्य स्त्रोत हैं वे सिर्फ परिस्थिति को संभाल रहे.

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