नागपुर: सार्वजनिक तौर पर दलित शब्द के इस्तेमाल पर रोक लगाने की मांगा करते हुए हाईकोर्ट में दर्ज जनहित याचिका पर सोमवार 29 अगस्त 2016 को सुनवाई हुई। इस सुनवाई के बाद मुंबई उच्च न्यायलय की नागपुर खंडपीठ की भूषण धर्माधिकारी और अतुल चांदुरकर की दोहरी पीठ ने इस मुद्दे पर सरकार से तीन हफ्ते में अपना पक्ष रखने का आदेश दिया है। दलित शब्द को असंवैधानिक बताते हुए समाज सेवक पंकज मेश्राम ने यह जनहित याचिका दर्ज कराई है। याचिकाकर्ता के मुताबिक यह शब्द असंवैधानिक है जिस पर संविधान निर्माता बाबासाहब आंबेडकर को भी आपत्ति थी।
याचिकाकर्ता ने इस विषय को लेकर देश की सुप्रीम कोर्ट और राज्यो के मुख्य न्यायालयों द्वारा दिए गए फैसलों का भी जिक्र किया है। तमिलनाडु सरकार के मामले का हवाला देते हुए बताया गया कि अदालत ने दलित शब्द को असंवैधानिक माना है। अनुसूचित जाति आयोग का भी यही मत है। यह शब्द भेदभाव दर्शाने वाला और जातिवाचक ही है। इस शब्द के प्रयोग से संविधान की कलम 14, 15, 16, 17, 21 और 341 का उल्लंघन होता है। शासकिय दस्तावेजों और योजनाओं से इस शब्द को हटाने का आश्वासन कई बार सरकार ने दिया पर अब तक ऐसा नहीं हुआ। याचिकाकर्ता के मुताबिक दलित शब्द की जगह अनुसूचित जाति या फिर नवबौद्ध शब्द का प्रयोग किया जाना चाहिए।
इस याचिका में सूचना प्रसारण के सह सचिव, प्रेस कौन्सिल ऑफ़ इंडिया के सह सचिव, राज्य के मुख्य सचिव, नगर विकास विभाग के प्रधान सचिव को प्रतिवादी बनाया गया है। अदालत ने इस सभी प्रतिवादियों से तीन हफ्ते के भीतर अपना पक्ष रखने का आदेश दिया है।