चैत्र नवरात्र यानी गुढ़ी पाड़वा एक ऐसा मौका होता है जब हम महाराष्ट्रवासी नए घर, फ्लैट या प्लाट की खरीद का मन बनाते हैं. अक्सर देखा गया है कि उत्सव के मौके को यादगार बनाने के चक्कर में कई बार लोग ठगी और धोखे का शिकार होते हैं. नागपुर टुडे अपने पाठकों को गुढ़ी पाड़वा की अशेष शुभकामनाएं देते हुए अपील करता है कि इस उत्सव पर आप अत्यंत सावधानीपूर्वक प्लाट, फ्लैट या घर खरीदें तथा इन निम्न बीस बातों का ख्याल रखें.
1. प्लाट खरीदते समय यह जान लें कि उक्त प्लाट का मालिक कौन है? प्लाट उस धारक के नाम पर रजिस्टर्ड है या फिर बिल्डर के नाम पर? यदि बिल्डर के नाम पर है तो प्लाट धारक के साथ क्या उसका कोई समझौता पत्र है या नहीं?
2. कई बार प्लाट के डेवलपमेंट के लिए बिल्डर लोन ले लेते हैं और इससे पता चलता है कि बिल्डर इस प्रोजेक्ट को लेकिर कितना संजीदा है। प्लॉट की खरीदारी के लिए यह एक सकारात्मक संकेत है। बैंक लोन से पता चलता है कि प्लॉट डेवलपमेंट के लिए निश्चित राशि का प्रावधान किया गया है और आपकी निश्चिंतता भी बढ़ जाती है, क्योंकि बैंक लोन देने से पहले कागजों की ठीक प्रकार पड़ताल करते हैं। ऐसे में फ्रॉड की संभावना कम ही रहती हैं।
3. प्लाट का एनए यानी गैर कृषि योग्य होना जरूरी होता है, लेकिन सिर्फ एनए भर से काम नहीं बनता मालूम होना चाहिए कि आपके प्लाट को एनए किसलिए दिया गया है, जैसे, एनए-कमर्शियल, एनए-वेयरहाउस, एनए-रिसोर्ट, एनए-आईटी और एनए-रेजिडेंशियल, इनमें से एनए-रेजिडेंशियल पर ही घर या मकान बनाने की अनुमति होती है. इसके अलावा जमीन किस काम के लिए उपयोग की जा रही उसके दस्तावेज जरुर देखें. घर बनाने के लिए एनए-रेजिडेंशियल जमीन ही खरीदें.
4. एफएसआई जाने बिना न खरीदें. मान लें कि प्लाट 2000 वर्ग फुट का है और उस पर शत-प्रतिशत एफएसआई हो तो ही आप 2000 वर्ग फुट पर घर बना सकते हैं, लेकिन एफएसआई 75 प्रतिशत हुआ तो आप सिर्फ 1500 वर्ग फुट पर ही घर बना सकते हैं. ऐसे में कई बार एफएसआई बढ़ाने के लिए सरकारी कार्यालयों के चक्कर ही लगाते रह जाना पड़ता है.
5. प्लाट बेचने वाले के दूसरे प्रोजेक्ट्स के बारे में भी जरुर जन लें, इससे बिल्डर की विश्वसनीयता के साथ, जमीन की गुणवत्ता और अन्य बातों के स्पष्टीकरण अपने आप मिल जाएंगे.
6. अग्रिम भुगतान करते समय यह जन लें कि प्लाट को रजिस्ट्री कब होगी. ध्यान रखें कि बिल्डर एग्रीमेंट तो सेल तो अग्रिम राशि के भुगतान के समय ही बना देते हैं, लेकिन सेल डीड बनाने में अक्सर आनाकानी करते हैं और फिर खरीददार पर दबाव बनाकर मनमानी पैसे वसूलते हैं. इसलिए सेल डीड की सुनिश्चितता के बाद ही प्लाट खरीदने का निर्णय करें.
7. यह जानना भी जरुरी होता है कि भूमि अभिलेख कार्यालय में उक्त प्लाट आपके नाम पर दर्ज होगा या नहीं, संबंधित निकाय कार्यालय, जैसे ग्राम पंचायत, नगर परिषद, महानगर पालिका से इस संबंध में जानकारी प्राप्त की जा सकती है. महाराष्ट्र सरकार की आधिकारिक वेबसाइट पर भी इस संबंध में अनेक जानकारी उपलब्ध है.
8. प्लाट खरीदते समय यह जानना भी जरुरी है कि उस पर सालाना चार्ज तो नहीं लगेगा? प्लाट बेचते समय बिल्डर खरीददारों को इस बारे में कुछ नहीं बताते, लेकिन रजिस्ट्री करते समय मनमाफिक रखरखाव चार्ज वसूलते हैं.
9. यह भी जाने कि आपका प्लाट समतल जमीन पर है या असमतल जमीन पर. बिल्डर को प्लाट बेचने का धिकार तभी है जब वह प्लाट क्षेत्र की सारी जमीन एकसी समतल करा दे.
10. प्लाट में पानी, बिजली और सड़क के बारे में जानना आपके लिए जरुरी काम में से एक है. कई बार बिल्डर मुख्य सड़क तो बना देते हैं, लेकिन पहुँच या निकासी मार्ग नहीं बनाते और घर बनाने के बाद रहने वाले को मुख्य सड़क तक पहुँच मार्ग अपने खर्चे से बनाना पड़ता है, जबकि हर तरह की सड़क, आपके प्लाट तक पानी, बिजली और गटरलाइन पहुँचाने का काम प्लाट विक्रेता का है. वह इन सबकी कीमत खरीददार से वसूलता है.
फ्लैट खरीदते समय रखें इन बातों का ख्याल
1. फ्लैट खरीदते समय भी खास ख्याल रखने की जरुरत है. फ्लैट खरीदते समय लक्ष्य निर्धारित करना जरुरी है कि किस मकसद से खरीद रहे हैं, रहने के लिए या निवेश करने के लिए. यदि रहने के लिए खरीद रहें हैं तो भी कई और बातों का ख्याल रखना होता है. निवेश के लिए व्यावसायिक स्पेस की खरीददारी उत्तम विकल्प है.
2. फ्लैट सही जगह पर यानी आपकी सुविधा की जगह पर होना जरुरी है. साथ ही आने वाले समय में उस जगह को लेकर क्या स्थिति होगी यह भी जानना जरुरी है.
3. फ्लैट का टाइटल चेक करना जरुरी है, कई बार बिल्डर एक ही फ्लैट कई लोगों को बेच देता है, इससे पैसे के साथ भरोसा भी दांव पर लग जाता है. इसलिए टाइटल क्लीयरेंस सर्टिफिकेट की मांग बिल्डर से करें और उसे नगर संरचना विभाग से वेरीफाई कराएं.
4. यह जानना भी जरुरी है कि बिल्डर ने हाउसिंग स्कीम नियमतः नक्शा पास कराकर और सम्बंधित विभाग से हर तरह की अनुमति पाने के बाद ही की है या नहीं, वर्ना कई बार कुछ ही साल में नगर प्रशासन द्वारा हाउसिंग स्कीम को तोड़ने के मामले अक्सर अख़बारों में हम पढ़ते हैं.
5. यह भी जानें कि उस फ्लैट या पूरी स्कीम पर बिल्डर ने कोई ऋण तो नहीं लिया है, नहीं तो फ्लैट खरीदने के बाद पूरा जीवन ऋण उतारने में ही बीत जाता है. सेकंड हैण्ड फ्लैट खरीदते समय यह सावधानी अति अनिवार्य है.
6. नामी-गिरामी बिल्डरों की स्कीम से फ्लैट ख़रीदें, उनके यहाँ फर्जीवाड़े की आशंका लगभग नगण्य होती है. कई बार तो बिल्डर फ्लैट ही नहीं बनाते और विज्ञापन देकर लोगों से अग्रिम राशि के रूप में मोटी रकम वसूलकर चंपत हो जाते हैं.
7. धोखे भरे विज्ञापनों से बचने की कोशिश करें, जैसे कि फल स्कीम के पास से मेट्रो गुजरेगी या मॉल बनेगा या ऐसा होगा, वैसा होगा, अक्सर ऐसे विज्ञापन फर्जी ही होते हैं, ऐसे विज्ञापनों के चक्कर में कतई न पड़ें. कई बार तो इन सुविधाओं के नाम पर फ्लैट खरीददारों से ही अतिरिक्त पैसे वसूले जाते हैं और खरीददार को बरसों बाद असलियत का पता चलता है.
8. सैंपल फ्लैट देखते समय यह सुनिश्चित करना जरुरी होता है कि असल फ्लैट में भी वही सारी सुविधाएँ और गुणवत्तापूर्ण सामग्री का इस्तेमाल होगा, इसके लिए बिल्डर से लिखित तौर पर आश्वासन ले लिया जाना चाहिए.
9. गलत चार्ज के फेर से भी बचना होता है, मसलन बिल्डर क्लब के नाम पर, पार्किंग के नाम पर, अन्य सुविधाओं के नाम पर और सर्विस टैक्स के नाम पर भी खरीददारों से अतिरिक्त वसूली करते हैं, जबकि ये सारी सुविधाएं बिल्डर को अनिवार्यतः खरीददारों को देनी होती है.
10. यह भी जानना चाहिए कि जिस भूमि पर वह इमारत खड़ी की गई है, वह जमीन किसी तरह की दुविधा और योजना अंतर्गत तो नहीं आती! मसलन कई बिल्डर आदिवासियों की जमीन पर बिल्डिंग स्कीम बना देते हैं, जिसका खामियाजा खरीददार को आगे चलकर भुगतना ही पड़ता है.
मुख्य बातें:
– जमीन खरीदना फ्लैट खरीदने से ज्यादा पेचीदा होता है, फैसला लेने में जल्दबाजी न करें।
– प्लॉट के लिए बिजली और पानी जैसी आधारभूत जरूरतों को पहले सुनिश्चित करें।
– जमीन का मालिकाना हक और लैंड यूज आदि के कागजातों की गहन पड़ताल जरूर करें।
– अंतिम निर्णय पर पहुंचने से पहले बिल्डर के पुराने प्रोजेक्ट के खरीदारों से जरूर बात करें।
खतरे की घंटी
– अगर विक्रेता पूरा का पूरा पैसा कैश में मांग रहा हो।
– प्रॉपर्टी के ओरिजनल दस्तावेज मौजूद न हों।
– दस्तावेजों में किए गए दस्तखतों में फर्क नजर आए।
– प्रॉपर्टी के दस्तावेज प्लेन पेपर पर बनाए गए हों।
– सौदा होने के वक्त विक्रेता मौजूद न हो।
– प्रॉपर्टी गिरवी रखी गई हो या उस पर कोई कोर्ट केस चल रहा है।
– प्रॉपर्टी टैक्स, बिजली का बिल, पानी का बिल जैसी चीजों का भुगतान रुका हुआ है।
– प्रॉपर्टी पर विक्रेता के अलावा किसी और का कब्जा हो।
क्या आप जानते हैं ?
– प्रॉपर्टी के मालिक को रजिस्ट्री दस्तावेजों पर अपना फोटो लगाना जरूरी है।
– दोनों पार्टियां एक-दूसरे की मौजूदगी में रजिस्ट्री के दस्तावेजों पर साइन करती हैं।
– अगर कोई नकली दस्तावेज बनाकर प्रॉपर्टी बेचता है, तो उस पर आईपीसी की धारा 467, 468 और 471 के तहत मुकदमा चलाया जा सकता है। 467 में अधिकतम सजा उम्र कैद तक हो सकती है। इसी तरह 468 और 471 में सात साल तक की अधिकतम सजा हो सकती है। अगर कोई नकली दस्तावेजों के आधार पर सौदा करके पैसे भी ले लेता है, तो उस पर धारा 420 लगाई जा सकती है, जिसमें अधिकतम कैद सात साल की है।