यवतमाल। यवतमाल जिला आजादी के बाद से ही कांग्रेस का गढ़ रहा है. मगर कांग्रेस में अपने वर्चस्व को लेकर अलग-अलग नेताओं के गुटों में एक-दूसरे की टांग खिंचने की प्रवृत्ति जन्म ले चुकी है. उसी ने जिले में कांग्रेस का सफाया कर दिया है. कांग्रेस को दूसरा कोई नहीं हरा सकता. सिर्फ कांग्रेसी ही कांग्रेस को धूल चटा सकते है. यह बात है. इसका नजारा इस विधानसभा चुनाव के परिणामों में दिया है.
मोघे-पुरके एक दूसरे के कट्टर विरोधी शिवाजीराव मोघे और वसंतराव पुरके यह दोनों आदिवासी नेता है. जब भी कांग्रेस सरकार रहीं तब इन दोनों में से एक को अच्छा मंत्रालय मिला तो पुरके को इंतज़ार करना पड़ा. ऐसे में दोनों नेताओं ने सोच लिया था कि, एक दूसरे को कैसे चुनकर आते है? इसके लिए बिना सामने आये फिल्डिंग लगाया. उन्होंने ऐसा किया भी. मगर दोनों भी बुरी तरह से हार गए. इनकी दुश्मनी यहाँ तक जा सकती है की वे उस उम्मीदवार को गिराने के लिए उसके वोट खानेवाले व्यक्ति को खर्च देकर खड़ा भी कर सकते है. इतना ही नहीं तो वह उम्मीदवार हार जाए, इसके लिए उनकी पूरी कबर खोदने में समय भी नहीं लगाते. मगर दूसरा व्यक्ति भी इनकी कबर खोद रहा है. इसका अहसास नहीं रहता. इसलिए इन दोनों का पानीपत हो गया.
प्रदेशाध्यक्ष माणिकराव ठाकरे सब गुटों के विरोधी
कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष द्वारा चली चालों से जिले के तत्कालीन कांग्रेसी विधायक कई बार मुसीबत में फंस चुके है. इसलिए वे उनकी रेंज में ठाकरे या उसका करीबी कोई आये तो उसे सबक सिखाने से परहेज नहीं रखते. बस इसी बात का खामियाजा बेकसूर राहुल ठाकरे को भुगतना पड़ा. राहुल विरोधी जितनी चाले चलनी थी, वह सभी गुटों चल दी. एक कांग्रेसी नेता ने तो विशेष सभाएं लेकर राहुल को बुरी तरह हार का मजा चखाओं ऐसा उनके करीबियों को कह दिया. इतना ही नहीं रोज-रोज चुनावी दिनों में राहुल के खिलाफ इतना विष घोल दिया जिसके कारण राहुल डिपॉजिट भी नहीं बचा पाये.
इस नेता की शिकायत सोनिया गांधी और राहुल गांधी तक की है. जिसके कारण उन्हें वह से यह सब बंद कर राहुल को को जितवाने के लिए प्रयास करने के निर्देश दिए गए. जिसके बाद उस नेता ने भी तीन चार स्थानों पर सभा लेकर वे काँग्रेस का काम कर रहे है. ऐसे बताने कोशिश की. वे इतनी दुश्मनी पर क्यों उतर आये है? इनका कारण माणिकराव द्वारा प्रदेशाध्यक्ष पद जिम्मेदारी निभाते समय एक महानगर में लिया गया निर्णय ही जड़ बना था. जिले में कांग्रेसियों के 3-4 गट है. सब अपनी-अपनी चाल चलते हुए अपना-अपना राग आलपते है. यही कारण है की पुसद के कांग्रेसी उम्मीदवार सचिन नाईक ने सरेआम कांग्रेस में चल रही गुटबाजी और नेताओं द्वारा सामने पुचकारणे और बाद में उसे लंबा करने की नीति को जमकर कोसा है. पहले उत्तमराव पाटिल का गुट, माणिकराव का गुट, मोघे गुट हुआ करते थे. पाटिल के जाने के बाद में यह तीनों गुटों के बीच हमेशा एक-दूसरे कको निचा दिखाने के लिए बेमलुम कोशिश होती रही. कुल मिलाकर कांग्रेस ने ही कांग्रेसियों का गढ़ ढहाने में पूरी ताकत झोंक दी थी.