सामाजिक एकता का प्रतीक ईद है शीर-खुर्मा खाने का दिन
फिरोज पठान /चिमुर
दुनिया के हर धर्म का उदय मानव जाति के कल्याण के लिए ही हुआ है. प्रत्येक धर्म में धर्मगुरुओं ने धर्म का पालन करने और समाज को एकसूत्र में पिरोने के लिए कुछ नियम बनाए हैं. ऐसे ही कुछ नियम इस्लाम धर्म में भी तए किए गए हैं. इन्हीं नियमों का पालन आज सर्वत्र होता है.
सबसे महत्वपूर्ण त्यौहार
रमजान ईद को मुस्लिमों का सबसे महत्वपूर्ण त्यौहार माना जाता है. इसमें खास बात यह है कि इस महीने समाजबंधुओं को अपनी आय का ढाई प्रतिशत हिस्सा गरीबों को दान करना जरूरी होता है. मुस्लिम बंधुओं का सबसे महत्वपूर्ण त्यौहार होने के कारण अन्य समाज के लोगों को भी ईद की प्रतीक्षा रहती है. महीने भर के उपवास के बाद कहीं शीर-खुर्मा खाने का दिन आता है. इसी के चलते यह त्यौहार सामाजिक एकता का प्रतीक भी माना जाता है.
पाक इबादत का महीना
रमजान महीने को पाक इबादत (शुद्ध अंत:करण से पूजना) का महीना कहा जाता है. शरीर और मन की पवित्रता बनाए रखने के लिए ही रमजान के महीने का विनियोजन किया गया. सम्पूर्ण श्रद्धा के साथ उपवास कर पांच वक्त की नमाज के द्वारा अल्लाह की आराधना की जाती है. इसमें मुस्लिम समाज के छोटे बच्चों से लेकर तो वयोवृद्ध व्यक्ति तक शामिल होते हैं.
तीन अशरे
रमजान महीने में तीन अशरे (पर्व) होते हैं. तीनों पर्व दस-दस दिनों के होते हैं. पहला पर्व रहमत, दूसरा मगफिरत और तीसरे पर्व को जहान्न कहा जाता है. सब कुछ भूलकर निर्धारित समय में मुस्लिम बंधु अपने हाथों का काम छोड़कर नमाज अदा करते हैं. इससे मस्जिद परिसर में एक चैतन्य के दर्शन होते हैं.
चिमुर में चार मस्जिदें
चिमुर में चार मस्जिदें हैं, जिसमें सबसे पुरानी मस्जिद को जामा मस्जिद कहा जाता है. दूसरी सुन्नी मस्जिद है, जहां पर रात में तराबीह की नमाज अदा की जाती है. इसमें पवित्र ग्रंथ कुरान का पाठ भी किया जाता है. इसे विस रकात तराबीह कहा जाता है. कुल 30 अध्यायों का पाठ किया जाता है और हर दिन को आराधना की दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जाता है.
पवित्र ग्रंथ कुरान का अवतरण
मौलाना जमशेद आलम ने बताया कि 25 जुलाई को 26 वां रोजा (उपवास) था. माना जाता है कि इसी दिन पवित्र ग्रंथ कुरान का अवतरण हुआ था. 26 वें रोजे के संदर्भ में इस तरह की एक आख्यायिका भी है. इस कारण उस रात जागरण कर आराधना का विशेष महत्व है.
सबूरी का महीना
रमजान के महीने को सबूरी (सहनशीलता) का महीना भी कहा जाता है. जो भी इन नियमों का पालन करता है, वह हर समय एक परीक्षा से गुजरता रहता है. साल भर होनेवाली आय का ढाई प्रतिशत हिस्सा गरीबों के लिए रखा जाता है. इसी को जकात कहते हैं. समाज के अनेक लोगों को दो वक्त का खाना भी समय पर नहीं मिलता, जिससे उन्हें भूखा रहना पड़ता है. इसकी अनुभूति हर किसी को होनी चाहिए. इसी कारण मुस्लिम धर्म में रोजा रख अल्लाह की उपासना में दिन भर भूखा रहने की प्रथा है. लगातार एक महीने तक इस प्रक्रिया से गुजरने के बाद रमजान ईद का दिन आता है. इस दिन सारे मुस्लिम बंधु-बांधव अपने रिश्तेदारों को ‘शीर-खुर्मा’ (खीर) खाने के लिए निमंत्रित करते हैं.